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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयडमि। (भा.११९) इट्ठन [इष्ट] इष्ट, स्वाभ्युपगत, लक्ष्य । णट्ठमणिठे सव्वं, इलैं पुण जंतुतं लद्धं । (प्रव.६१) पय्या इट्टे विसए। (प्रव.६५) -दर वि तर अतिप्रिय। (प्रव.चा.३) कुलरूववयोविसिट्ठमिट्ठदरं। -दरिसि वि [दर्शिन्] इष्ट को देखने वाला। विसएसु मोहिदाणं, कहियं मग्गं पि इट्ठदरिसीणं । (शी.१३) दरिसीणं (ष.ब.) षष्ठी बहुवचन में ण और णं प्रत्ययों का विधान है। इड्ढि स्त्री [ऋद्धि] वैभव, ऐश्वर्य, सम्पत्ति। (भा.१२९,१५) इड्ढिमतुलं विउनिय! (भा.१२९) पुलिङ्ग तथा स्त्रीलिङ्ग इकारान्त शब्दों के प्रथमा एकवचन में शब्द के अन्तिम इको दीर्घ हो जाता है। इड्ढी (प्र.ए.) इड्ढिं (द्वि.ए.) इति अ [इति] इस प्रकार। (पंचा.७४) इत्थी स्त्री [स्त्री] देखो इच्छी। (सू.२२,२४) इदर वि [इतर] अन्य, दूसरा। (स.१९३, निय.१३७,१३८, प्रव.५४, पंचा.१७) देवो हवेदि इदरो वा। (पंचा.१७) इदाणिं अ [इदानीम्] इस समय,अब,अभी।सा इदाणिं कत्ता। (प्र.क्षे.९४) इदि अ [इति] इस प्रकार, ऐसा, इस तरह । (पंचा.५४, निय.३) भणि तुल सारगिदि वयणं । (निय.३) इम स [इसम्) यह। इदं भी काचित् मिलता है। (पंचा.१६४, म.२१, २०५) (हे. इदम इगः ३/७२) द्वितीया विभक्ति के एक पान में इमं का इणं रूप भी होता है। (हे. अमेणग् ३/७८) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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