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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असरीर पुं न [अशरीर] शरीर रहित, सिद्ध का एक गुण। (निय.४८) असरीरा अविणासा, अणिंदिया णिम्मला. विसुद्धप्पा। असह वि [असह] असहिष्णु, सहन न करना। असहंता (व.कृ.प्रव ६३) असहंता तं दुक्खं, रमंति विसएसु रम्मेसु। असहणीय वि [असहनीय] न सहने योग्य, अत्यन्त कठोर। (भा.९) असहाय वि [असहाय] सहायता बिना, सहायता रहित, सहायता से निरपेक्ष। (निय. १११.१३६) -गुणपुंन [गुण] असहायगुण, स्वापेक्ष गुणों से युक्त। (निय.१३६) असार वि [असार] सार रहित, सारहीन, निस्सार। (भा.११०) -संसार वि [संसार] असार-संसार। (भा. ११०) उत्तमबोहिणिमित्तं असारसंसार मुणिऊण। असियसय पुं न [अशीतिशत् एक सौ अस्सी। (भा.१३६) मिथ्यादृष्टियों के ३६३ भेदों में क्रियावादियों के एक सौ अस्सी भेद गिनाये गये हैं। असियसयकिरियावाई । (भा.१३६) असीदि पुंन [अशीति] अस्सी, द्वीन्द्रियादि जीवों के भवों का जो वर्णन किया गया है, उसमें द्वीन्द्रियों के ८० भव गिनाये हैं। वियलिंदिए असीदी। (भा.२९) असुइ/असुचि वि [अशुचि] अपवित्र, मलिन। (भा.४१, द्वा.४५) -त्त वि [त्व] अशुचिता, अपवित्रता। (स.७२, द्वा. २) -मज्झ न [मध्य] अपवित्रस्थान। असुइमज्झम्मि। (स.ए.) असुइमज्झम्मि लोलिओ सि तुम। (भा. ४१) असुत्त न [असूत्र] 1. ज्ञानरहित, आगमरहित। (सू.३) 2. For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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