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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 43 असत्य का त्याग, असत्य पाप से निवृत्ति। असच्चविरई (प्र. ए. चा.३०) चारित्रपाहुड में पंचमहाव्रत में असच्चविरई को दूसरे स्थान पर गिनाया है। हिंसाविरइ अहिंसा,असच्चविरई अदत्तविरई या तुरियं अबंभविरई, पंचम संगम्मि विरई य।। असण न [अशन] भोजन, आहार। (स. २१२, भा. ४०) असद वि [असत्] अविद्यमान, अभाव। (पंचा. १९) असद्द वि [अशब्द शब्द रहित। (पंचा. ७७, ७८, भा. ६५) सो णेओ परमाणू परिणामगुणो सयमसद्दो। असद्दहण वि [अश्रद्धान] अश्रद्धान, विश्वासरहित, प्रतीति का अभाव। (स.१३२) असढुव [असत्ध्रुव] सत् की नित्यता से रहित। (प्रव. जे. १३) असन्भूय वि [असद्भूत] असद्भूत, वर्तमान में अविद्यमान रूप। (प्रव. ३८) ते होति असब्भूया, पज्जाया णाणपच्चक्खा। असप्पलाव पुं [असत्प्रलाप] व्यर्थ प्रलाप, निष्प्रयोजन प्रलाप, व्यर्थ की बहुत बकवाद। सीलसहस्सट्ठार चउरासी गुणगणाण लक्खाई। भावहि अणुदिणु णिहिलं असप्पलावेण किं बहुणा।। (भा.१३०) असरण पुंन [अशरण] शरण रहित, अनुप्रेक्षाओं का दूसरा भेद, संरक्षण रहित। जीवणिबद्धा एए अधुव अणिच्चा तहा असरणा य। (स.७४) असरणा (प्र. ब.) मणिमंतोसहरक्खा, हयगयरहओ य सयलविज्जाओ। जीवाणं ण हि सरणं तिसु लोए मरणसमयम्हि।। (द्वा. ७) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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