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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 36 अवगहण न [अव+गाहन] अवगाहन, स्थान, जगह, गहराई, आत्मा का एक विशेष गुण। (निय.३०) अवगहणं आयासं, जीवादी-सव्वदव्वाणं। (निय.३०) अवगास पुं [अवकाश स्थान, जगह। आगासं अवगासं। (पंचा.९२) अवगाह पुं [अवगाह] अवगाहन, जगह देने का कारण। (प्रव.जे.४१) आगासस्सवगाहो। अवच्छण्ण वि [अवच्छन्न आच्छादित, ढंका हुआ। (स. १६०) अवणिद वि [अपनित] कम करना, दूर । (स.२४२) सबम्हि अवणिदे संते। (स.२४२) अवणीय वि [अपनीत] दूर किया गया, कम किया गया। (निय.१८४) अवणीय पूरयंतु। अवण्ण वि [अवर्ण] वर्ण रहित, रंग रहित। (पंचा.८३, स.१३७, अवत्तब वि [अवक्तव्य अनिर्वचनीय, किसी प्रकार से गोचर नहीं, सप्तभङ्गी का चौथा भेद। अत्थि त्ति य णत्थि त्ति य, हवदि अवत्तव्यमिदि पुणो दव्वं । (प्रव.जे.२३) अवमाण पुंन [अपमान] अवज्ञा, तिरस्कार। (निय.३९) णो खलु सहावठाणा, णो माण-वमाणभावठाणा वा। (निय.३९) अवमिच्चु पुं [अपमृत्यु] अकालमरण, अकारणमरण, आकस्मिकमरण | अवमिच्चु-महादुक्खं तिव्वं पत्तो सि तं मित्त । (भा.२७) अवर वि [अपर] 1. अन्य, दूसरा। (पंचा १०१,स.४०, भा.९६) अवरे पणवीसभावणा भावि। (भा.९६) 2. सि [अपर जघन्य, For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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