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कोहभयहासलोहापोहाविवरीयभासणा। (चा.३३) विवाग ' [विपाक] कर्म परिणाम, कर्मोदय, सुख-दुःखादि भोगरूपकर्मफल। (स.१९९)-उदब ' [उदय] विपाक उदय। (स.१९९) तस्स विवागोदओ हवदि एसो। (स.१९९) विवास पुं विवास] देशनिर्वासन, निष्कासन, दूसरी ओर निवास।
(प्रव.चा.१३) अधिवासे य विवासे। विवाह पुं विवाह व्याह, परिणय, जीवनबंधन। जो जोडदि
विब्बाह (लिं.९) विविह वि [विविध] नाना प्रकार का, अनेक प्रकार, बहुरूपी, भांति-भांति का। (पंचा.६४, स.१९८, प्रव.७०, भा.२६, मो.१३) उदयविवागो विविहो। (स.१९८) -कम्म पुन [कर्मन्] विविध कर्म, नाना प्रकार के कर्म। (मो.१३) विरओ मुच्चेइ विविहकम्मेहि। (मो.१३) -लक्खण पुंन लक्षण] नाना प्रकार के लक्षण, विविधलक्षण, अनेक स्वरूप। (प्रव.जे.५) इह विविहलक्खणाणं। (प्रव.जे.५) विविहो (प्र.ए.स.१९८) विविहाणि (प्र.ब.प्रव.७४) विविहं (द्वि.ए.प्रव.७०) विविहे विविहाणि। (द्वि.ब.स.९८) विविहेण (तृ.ए.पंचा.१४७) विविहेहिं (तृ.ब.पंचा.६४) विस पुंन [विष] जहर, गरल, हलाहल। (स.३०६, भा.२५,
शी.२२) विसयविसपुष्फफुल्लिय। (भा.१५७) -कुंभ पुं.[कुम्भ विषकलश, विषघट। (स.३०६) आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, परिहार, धारणा, निवृत्ति, निन्दा, गर्दा और शुद्धि,
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