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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 248 माणुस पुं न [मानुष] मनुष्य, मानव। (पंचा.११३, प्रव.३) देवो माणुसो त्ति पज्जाओ। (पंचा.१८) मादु स्त्री [मातृ] माता, माँ। (द्वा.३) मादुवाह पुंस्त्री [मातृवाह] द्वीन्द्रिय जीव विशेष। (पंचा.११४) माय/माया स्त्री मातृ माता, माँ। (भा.४०) मायभुत्तमण्णंते। माया स्त्री [माया] छल, कपट, धोखा, एक कषाय विशेष। (पंचा.१३८, भा.१०६, निय.८१) -चार पुं [आचार] मायाचार, छल। -वेल्लि स्त्री वल्ली] मोहरूपी लता। (भा.१५७) मार सक [मारय] मारना, ताड़ना। (स.२६१) मारिमि (व.उ.ए.स.२६१) मारेउ (वि. आ.प्र.ए.२६२) मारण न [मारण] हिंसा, वध, ताड़ना। (निय.६८) मारिद वि [मारित]मारा गया। (स.२५७, २५८) मारुय पुं [मारुत्] हवा,वायु। (भा.१२२)-बाहा स्त्री [बाधा] वायु की बाधा, वायु की पीड़ा। (भा.१२२) मास पुं [मास] महिना, दो पक्ष का मापक। (पंचा.२५, भा.३९) मासा स्त्री दे] मासिक धर्म। विज्जदि मासा तेसिं। (सू.३९) माहण पुंस्त्री [माहन] श्रावक। (सू.२७) माहप्प पुंन [माहात्मय] महत्त्व,गौरव,महिमा। (प्रव.५१,भा.१५) मिच्च न [मात्र] मात्र, केवल। (स.३२४) मिच्चु ' [मृत्यु] मौत, मरण। (निय.६) मिच्छ वि मिथ्या] मिथ्या, असत्य, झूठा। (स.३४१, प्रव.चा.६७) - उवजुत्त वि [उपयुक्त] मिथ्यात्व से युक्त। (प्रव.चा.६७) -त्त न For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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