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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 247 पराक्रमी,महाशक्तिशाली,भगवान महावीर,चौबीसवें तीर्थङ्कर का एक नाम। (पंचा.१०५) -सत्त पुंन [सत्त्व] महान् जीव। (भा.१३२) महि स्त्री [मही] पृथिवी, भूमि, धरती। (भा.१२५) - रुह ' [रुह] वृक्ष, पेड़। (शी.३६) -वीढ पुं पीठ] पृथ्वीतल। (भा.१२५) महिअ वि [महित] पूजित, सम्मानित। (भा.१२३) महिला स्त्री [महिला] स्त्री, नारी। (चा.२४, बो.५६) -लोयण न [लोकन] स्त्रियों को देखना। (चा.३५) महुपिंग पुं [मधुपिङ्ग] मधुपिङ्ग, एक मुनि का नाम, जो निदान मात्र के कारण कल्याण नहीं कर सके। (भा.४५) महेसि पुं [महर्षि] महर्षि, महामुनि। (निय.११७) मा अ [मा] मत, नहीं,निषेधवाचक अव्यय। (पंचा.१७२, स.३०१) माइ वि [मायिन्] मायाचारी, छलकपटी। (लिं.१२) माण सक [मानय] अनुभव करना, जानना। (मो.९३) माण पुं न [मान] अहङ्कार, अभिमान, मानकषाय विशेष । (पंचा.१३५, निय.८१) - उवजुत्त वि [उपयुक्त] मान से सहित। (स.१२५) -कसाअ/कसाय पुंन [कषाय] मानकषाय। (भा.४४, ७८) माणकसाएहिं सयलपरिचत्तो। (भा.५६) माणस न [मनस्] मन, अन्तःकरण, हृदय। (भा.१५) माणसिय [मानसिक] मनसम्बन्धी,मानसिक। (भा.११) माणिक्क न [माणिक्य] रत्न विशेष, माणिक। (भा.१४४) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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