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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 161 जिगवरवसहेहि णियदिणा भणिया। (प्रव.४३) णियट्ठवि निकृष्ट नीच, अधम । (लिं.२०) णियम पुं [नियम] प्रतिज्ञा, व्रत। (पंचा.१५०, स.३४, प्रव.चा.५६ मो.१४) -सार पुं [सार नियमसार, आत्मा का सार, व्रतो का सार (निय.१) णियल पुं निगड] बेड़ी, साकल, श्रृंखला। सोवण्णियम्हि णियलं। (स.१४६) णिरंजण वि [निरन्जन] निर्लेप, अन्जन रहित, मल रहित। (स.९०, भा.१६२) णिरंतर वि [निरन्तर लगातार, हमेशा, सदा। (भा.९०) णिरम/णिरय वि [निरत] 1.तत्पर, उद्यत। (लिं.१६) 2.j [नरक] नरक, नारकीजीव। णिरत्यअ/णिरत्थय वि [निरर्थक] व्यर्थ, बेकार। (स.२६६, शी.१५,भा.८९) णिरत्थया साहु दे मिच्छा। (स.२६६) णिरद वि [निरत] तल्लीन। (प्रव. जे.२) णिरवयव वि [निरवयव अवयव रहित, पूर्णता, सम्पूर्ण। (निय.१४२) णिरवसेस वि [निरवशेष] सम्पूर्ण, समस्त। धम्माई करेई णिरवसेसाई। (सू.१५) हिरवेक्ख वि निरपेक्ष अपेक्षारहित, लालसा रहित। (निय. ६०, प्रवं. चा.२०,मो.१२) जो देहे णिरवेक्खो । (मो.१२) णिस्सल वि [निःशल्य] पीड़ा रहित, दुःख रहित। (निय.८७) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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