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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 156 णिच्छ अक निश्च] मानना, निश्चयकरना, विचारना। (पंचा.४५) णिच्छम/णिच्छय पुंनिश्चय नयविशेष, यथार्थ निर्णय का सूचक पक्ष। (स.२१०, प्रव.९७, निय.२९) -अट्ठ वि [अर्थ] निश्चय का विषय, निश्चय का प्रयोजन, निश्चय का विचार। मोत्तूण णिच्छयटुं। (स.१५६) -गद वि [गत] निश्चय को प्राप्त हुआ, निर्णय को प्राप्त हुआ। (स.३) -णय पुं [नय] निश्चयनय। णिच्छयणयस्स एवं। (स.८३) णिच्छयदो (पं.ए.निय.५५, स.२३९) -दण्हू वि [तज्ञ] निश्चय को जानने वाले, निश्चय को समझने वाले। (स.६०) -वाइ वि [वादिन् निश्चयवादी, निश्चय का कथन करने वाले। (स.४३) -विदु वि [विद्] निश्चय को जानने वाला,निश्चय का ज्ञाता,पण्डित। (स.३३,९७)भण्णदि सो णिच्छयविदूहि। णिच्छिद वि निश्चित] निर्णीत, निश्चित किया हुआ। (स.४८, प्रव. चा.४) भणंति जे णिच्छिदा साहू। (स.३१) णिच्छित्ता वि [निश्चितत्व निश्चितता। णिच्छित्ता आगमदो। (प्रव.चा.३२) णिज्ज अक [नि+या निकलना,ले जाना,चले जाना। (स.२०९) णिज्जदु (वि. आ.प्र.ए.स.२०९) कम्मेहि य मिच्छत्तं, णिज्जइ णिज्जइ असंजमं चेव। (स.३३३) णिज्जण न [निर्जन] एकान्तस्थान, मनुष्य से रहित क्षेत्र। -देस पुं दिश] निर्जन प्रदेश, एकान्त स्थान। णिज्जणदेसेहि णिच्च अत्येइ। For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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