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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) सूचना चपेटिका के द्वारा ही चपेटा खानेवाले महाशय पिशाचपंडिताचार्य को सूचना दी जाती है कि नीचे लिखे सवालों का जवाब सभ्यता और प्रामाणिक शास्त्र सबूतों के साथ पुस्तकरूप में फाल्गुनशुक्ला पूर्णिमा के पेश्तर जाहिर करदें, ताकि पबलिक आम को उनकी सत्यता जानने और समझने का मौका मिले । साथ साथ में यह भी कह देना समुचित समझा जाता है कि चपाटेका के चपेटा सह लेनेवाले लेखक के सिवाय दूसरे कोई महाशय वीच में पंडितंमन्य बन कर उत्तर देने की तकलीफ न उठावें । क्योंकि उन मियाँमिठुओं के साथ चलते हुए प्रकरण में हमारा कोई ताल्लुक नहीं है। १ प्रश्न-असिने प्रोमोयरिए, रायदुठे भएव गेलन्ने | इस गाथा का समर्थ, स्थिर स्वतंत्र और लक्षणवाला' इत्यादि अर्थ जो तुमने किया है. सो बिलकुल शास्त्रविरुद्ध ही है । इस लिये इसकी सत्यता अथवा तुम्हारे कल्पित अर्थ के वास्ते भाष्य टीका और चूर्णि का पाठ दिखलाओ ? और यह गाथा अपवाद से वर्ण परावर्तन को दिखलाने वाली नहीं है ऐसा शास्त्र सबूतों से सिद्ध करो ? २ प्रश्न-~-गच्छाचारपयन्ना के लघुवृत्तिकार ने 'शुक्ल वस्त्र छोडने का कहा है ' ऐसा तुमने टीकाकार के विरुद्ध लिखा है, इस असत्य लिखान को सिद्ध करनेवाला तुम्हारे पास लघुवृत्ति या For Private And Personal Use Only
SR No.020446
Book TitleKulingivadanodgar Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandvijay
PublisherK R Oswal
Publication Year1926
Total Pages79
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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