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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ७० ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्यता वा इसी सिद्धान्त के अनुसार प्रस्तुत मीमांसा में वास्तविक सत्य का विचार लेखित है और वह आज जनता के कर-कमलों में उपस्थित है | ara इस की प्रसत्यता का निर्णय करना यह जनता के ऊपर ही निर्भर है और जनता ही इसकी वास्तविक कसौटी है । इससे जनता को चाहिये कि इसको अपनी मानसिक कसौटी पर चढा कर शास्त्रीय वास्तविक सत्य के विलासी बनें और असत्य मार्ग का परित्याग करें। एक विद्वान का कथन भी है कि " किसी धर्म या मत को प्राचीन होने ही के कारण ग्रहण मत करो । प्राचीनता उसकी सत्यता का कोई प्रमाण नहीं | कभी पुराने से पुराने मकान भी गिराने पडते हैं, तथा पुराने कपडे भी बदलने पडते हैं । नये से नया परिवर्तन भी यदि वह बुद्धि की परीक्षा में सफल हो सकता है तो वह उतना ही अच्छा है, जितना कि चमकते हुए प्रोस से सुशोभित गुलाब का फूल । ' " " जो मनुष्य अपनी भूलों और त्रुटियों को प्रगट होते नहीं देख सकता, किन्तु उन्हें छिपाया चाहता है, वह सत्यमार्ग का अनुगामी नहीं हो सकता । उसके पास लालच को पराजित करने के लिये काफी सामान नहीं है । जो मनुष्य अपनी नीच प्रकृति का निर्भय होकर सामना नहीं कर सकता, वह त्याग के ऊंचे पथरीले शिखर पर नहीं चढ़ सकता । " For Private And Personal Use Only
SR No.020446
Book TitleKulingivadanodgar Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandvijay
PublisherK R Oswal
Publication Year1926
Total Pages79
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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