SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -१२ उपरी भाग में सर्व धातु का अन्य तेईस तीर्थङ्करों को प्रति माएं सहित भव्य सिंहासन है । इस प्रकार परिकर में एक साथ चौबास तार्थङ्करों क दर्शन होते हैं। भ० आदिनाथ के दोनों ओर खड्गासन लगाये दो तोर्थङ्करों का प्रतिमाओं के परम वातरोग निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) अवस्था में दर्शन होते है सबके मध्य श्यामवर्ण पद्मासन लगभग तोन फोट उतंग भ० ऋषभदेव के उपर तीन छत्र (एक साथ जुडे हुए)तान लोकों का स्वामोपना प्रकट करते हैं । प्रभु के पोछे प्रखर तेजस्वी सभामण्डप सुशोभित होता है । दानों दिशाओं में एक-एक अखण्ड ज्याति के प्रकाश में अनुपम ज्योति स्वरुप अरहत अवस्था में धर्म सभा के मध्य विराजमान से जगत पूज्य ऋषभ स्वामो के मनोहर दर्शन होते हैं । सिंहासन को छोड़कर सारा गर्भगृह तथा गर्भगृह का द्वार चांदी से मढ़ा हूंा है अत्यन्त मनोहर गर्भगृह में भ० ऋषभनाथ का रुप देखते ही बनता है । प्रतिमाजी पर अत्यधिक केशर चढ़ने से भ० ऋषभदेव को केशरिया या 'केशरियानाथजो' भो कहते है और अब तो धुलेव नगरी भो केशरियाजी से सम्बन्धित की जाती है । प्रतिमाजी काले पाषाण की होने से आदिवासी भील भाई इन्हे 'काराजी' केशरिया बाबा' कहते हैं कुछ लोग तो भक्तिवशात् "धुलेवा धणो" और "केरियालाल के नाम से जयध्वनि करते हैं। इस प्रकार अनेक व्यक्ति कई प्रकार से भनवाग की भक्ति कर आन्नद का अनुभव करते हैं प्रतिमाजी का अतिशय अथवा तीर्थ के चमत्कार का वर्णन आगे करेंगे । For Private and Personal Use Only
SR No.020442
Book TitleKesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Marttand
PublisherMahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain
Publication Year1987
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy