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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यहां से एक मील दूर भगवान की चरण पादुकाएं है । वहां से धुलिया भील के स्वपन अनुसार यह प्रतिमा जमीन से निकली थी । धुलिया भील के नाम के कारण यह गांव धुलेव क. लाता है । बाबूजी का यह मत प्राप्त प्रमाणों में विशेष मान्य है सत्य है । गाय के दुध झरने का कथन भी सत्य माना जा सकता है । प्रतिमाजो के प्रकट होने के उपरांत सातिशय चित्ताकर्षक देखकर छोटे से जिनालय में विराजमान की और बाद में भट्टारकों के उपदेश दानी श्रावकों ने क्रम से इतने बड़े मन्दिर का निर्माण कराया है । ऐसा प्रास्त शिलालेखों से प्रमाणित होता है। प्रतिमाजी की प्रतीव प्राचीनता के विषय में सभी इतिहासकार सहमत है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इस समय मन्दिर में विराजमान प्रतिमा निज मन्दिर में आदि ब्रह्मा भगवान ऋषभदेव की सातिशय चतुर्थकालीन दि० प्रतिमाजी लगभग १ फुट ऊंचे पावासरण पर विराजमान हैं जिसमें नीचे ही मध्यभाग में दो बैलो के वोच देवो तथा उस पर हाथी, सिंह, देव आदि सर्व धातु के बने हुए हैं । उस पर १६ स्वपन अङ्कित किये हुए है, जिनके ऊपर छोडेर नव जिन प्रतिमाएजी है जिन्हें इस समय लोग नवदेव कहते हैं । मूलनायक के माजु बाजु तथा For Private and Personal Use Only
SR No.020442
Book TitleKesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Marttand
PublisherMahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain
Publication Year1987
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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