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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ २९ ॥ 禁崇賺賺賺賺賺賺靠車掌串激準索賺崇幸藏浩森潮染率 सुगंध-वर-गंधियं गंधिवट्टि-भूयं करेह, कारवेह, करित्ता कारवित्ता य सिंहासणं रयावेह, | रयावित्ता मम एय-माणत्तियं खिप्पामेव पच्च-प्पिणह ।। सू. ५८ ॥ तए णं ते कोइंबिय-परिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हठ्ठ-तुठ्ठ जाव | हियया करयल जाव कटु एवं सामि त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, | पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिआओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवठ्ठाणसालं गंधोदय-सित्त-सुइं जाव सीहासणं रयाविति, रयावित्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। सू. ५९ ।। तए णं | सिद्धत्थे खत्तिए कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोम-लुम्मी-लियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोग-प्पगास-किंसुय-सुयमुह- गुंजद्धराग-बंधुजीवग- पारावय - चलण- नयण-परहुअ-सुरत्त-लोअण-जासुअण- कुसुमरासि -हिंगुलय- निअराइरेग-रेहंत-सरिसे कमलायर-संड-विबोहए उठ्ठियंमि सूरे सहस्स-रस्सिमि दिणयरे 聯球路撒路器幕沿路沿珞瑜路路路路路路路路路路路路 For Private and Personal Use Only
SR No.020430
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages121
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size9 MB
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