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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 40 4054050040 www.kobatirth.org चाहिये 191 3 चातुर्मास रहे हुए साधु या साध्वियों को चारों दिशा और विदिशाओं में एक योजन और एक कोस तक 'भिक्षाचर्या के लिए आना जाना कल्पता है ।10। जहां पर नित्य ही अधिक पानी वाली नदी हो और नित्य बहती हो वहां सर्व दिशाओं में एक योजन और एक कोस तक भिक्षाचर्या के लिए जाना आना नहीं कल्पता |11| कुणाला नामा नगरी के पास ऐरावती नामा नदी हमेशा दो कोश प्रमाण में बहती है । वैसी नदी थोड़ा पानी होने से उल्लंघन करनी कल्पती है, परन्तु निम्न प्रकार से नदी उतरना कल्पता है । एक पैर जल में रक्खे और दूसरा पैर पानी से ऊपर रख कर चले। यदि इस प्रकार नदी उतर सकता हो तो चारों दिशा और विदिशाओं में एक योजन और एक कोस तक भिक्षा के निमित्त जाना आना कल्पता है 112। जहां पूर्वोक्त रीति से न जासके वहां साधुओं को चारों दिशा और विदिशाओं में इतना जाना आना नहीं कल्पता । यदि जंघा तक पानी हो तो वह दकसंघट्ट कहलाता है। नाभि तक पानी हो तो लेप कहाता है और नाभि से उपर हो तो वह लेपोपरि कहलाता है । शेषकाल में तीन दफा दकसंघट्ट होने पर क्षेत्र नहीं हना जाता 'इसलिए वहां जाना कल्पता है । वर्षाकाल में सात दफा दकसंघट्ट होने पर क्षेत्र नहीं हना जाता । शेषकाल में चौथा और वर्षाकाल में आठवां दकसंघट्ट होने पर क्षेत्र हना जाता है। लेप तो एक भी क्षेत्र को हनता है । इससे नाभि तक पानी हो तो उतरना नहीं कल्पता । नाभि से ऊपरपानी होने पर तो सर्वथा ही नहीं कल्पता |13| For Private and Personal Use Only 40500405001050040 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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