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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 118911 405405004050010 www.kobatirth.org बुद्ध तो क्या यह चंद्रमा है ? नहीं वह तो कलंक युक्त है। तो क्या सूर्य है ? नहीं वह भी नहीं क्यों कि सूर्य तो तीव्र कान्तिवाला है । तो क्या रू है ? नहीं वह तो नितान्त कठिन है । तो क्या यह कामदेव है ? नहीं कामदेव तो शरीर रहित है । हां अब मैंने जाना यह दोष रहित और सर्वगुणसंपन्न अन्तिम तीर्थकर है। सुवर्ण सिंहासन पर बैठे इंद्रों से पूजित श्रीवीरप्रभु को देखकर इंद्रभूति सोचने लगा कि अब मैं पूर्वोपार्जन किया महत्व किस तरह रख सकूंगा ? एक कीलिका के लिए मैंने महल को गिराने की इच्छा की। एक को न जीतने से मेरी क्या मानहानि होती थी ? मैं जगत जीतनेवाला हूं ऐसा नाम अब कैसे रख सकूंगा ? अहो मैंने यह विचार रहित कार्य किया है जो 'जगदीश के अवतार को जीतने आया हूं ? अब मैं किस तरह इसके पास जाऊं और बोल सकूंगा ? अब मैं संकट में पड़ा हूं । अब तो शिवजी ही मेरे यश की रक्षा करेंगे । यदि कदाचित् भाग्योदय से मेरी यहां जीत हो जाय तो मैं विश्वभर में पंडित शिरोमणि कहलाऊं । इस प्रकार विचार करते हुए इंद्रभूति को प्रभु ने उसका नाम और गोत्र 'उच्चारण पूर्वक अमृत तुल्य मीठी वाणी से बुलाया हे गौतम इंद्रभूति ! तू यहां सुखपूर्वक आया है ने ? प्रभु का यह वचन सुन वह सोचने लगा-अरे! यह क्या! यह तो मेरा नाम भी जानता है !!! अथवा तीन जगत में विख्यात मेरा नाम कौन नहीं जानता? क्या सूर्य किसी से छिपा रहता है ? यदि यह मेरे मन में रहे हुए गुप्त संदेहों को कह बतलावे तो मैं इसे सर्वज्ञ मानूं । इस तरह विचार करते हुए इंद्रभूति को श्री महावीर प्रभु ने कहा- क्या तेरे For Private and Personal Use Only 105 110500100 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छट्टा व्याख्यान 89 Gram
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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