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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद
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बुद्ध
तो क्या यह चंद्रमा है ? नहीं वह तो कलंक युक्त है। तो क्या सूर्य है ? नहीं वह भी नहीं क्यों कि सूर्य तो तीव्र कान्तिवाला है । तो क्या रू है ? नहीं वह तो नितान्त कठिन है । तो क्या यह कामदेव है ? नहीं कामदेव तो शरीर रहित है । हां अब मैंने जाना यह दोष रहित और सर्वगुणसंपन्न अन्तिम तीर्थकर है। सुवर्ण सिंहासन पर बैठे इंद्रों से पूजित श्रीवीरप्रभु को देखकर इंद्रभूति सोचने लगा कि अब मैं पूर्वोपार्जन किया महत्व किस तरह रख सकूंगा ? एक कीलिका के लिए मैंने महल को गिराने की इच्छा की। एक को न जीतने से मेरी क्या मानहानि होती थी ? मैं जगत जीतनेवाला हूं ऐसा नाम अब कैसे रख सकूंगा ? अहो मैंने यह विचार रहित कार्य किया है जो 'जगदीश के अवतार को जीतने आया हूं ? अब मैं किस तरह इसके पास जाऊं और बोल सकूंगा ? अब मैं संकट में पड़ा हूं । अब तो शिवजी ही मेरे यश की रक्षा करेंगे । यदि कदाचित् भाग्योदय से मेरी यहां जीत हो जाय तो मैं विश्वभर में पंडित शिरोमणि कहलाऊं । इस प्रकार विचार करते हुए इंद्रभूति को प्रभु ने उसका नाम और गोत्र 'उच्चारण पूर्वक अमृत तुल्य मीठी वाणी से बुलाया हे गौतम इंद्रभूति ! तू यहां सुखपूर्वक आया है ने ? प्रभु का यह वचन सुन वह सोचने लगा-अरे! यह क्या! यह तो मेरा नाम भी जानता है !!! अथवा तीन जगत में विख्यात मेरा नाम कौन नहीं जानता? क्या सूर्य किसी से छिपा रहता है ? यदि यह मेरे मन में रहे हुए गुप्त संदेहों को कह बतलावे तो मैं इसे सर्वज्ञ मानूं । इस तरह विचार करते हुए इंद्रभूति को श्री महावीर प्रभु ने कहा- क्या तेरे
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छट्टा
व्याख्यान
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Gram