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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 547 प्रदक्षिण प्रक्रमणात्कृशानो सदर्चिषस्तन्मिथुनं चकासे। 7/71 ईंधन से जलती हुई अग्नि का फेरा देते समय पार्वती जी और शंकर इस प्रकार शोभित हुए। 2. शिखा :-स्त्री० [शी+'शीद्रो हस्वश्च'इति ख, ह्रस्वो गुणाभावश्च, स्त्रियाँ टाप्] अग्निज्वाला, ज्वाल, कील। प्रभामहत्या शिखयैव दीपस्त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्गः। 1/28 जैसे अत्यन्त प्रकाशमान लौ को पाकर दीपक, मन्दाकिनी को पाकर स्वर्ग का मार्ग। ज्वलन्मणिं शिखाश्चैनं वासुकिप्रमुखा निशि। 2/38 चमकते हुए मणि के मनवाले वासुकि आदि बड़े-बड़े साँप रात को। अलक 1. अलक :-पुं० [अलति भूषयति मुखम् । अल् +क्युन्] बाल। तदाप्रभृत्यन्मदना पितुगृहे ललाटिका चन्दन धूसरालका। 5/55 तभी से ये बेचारी अपने पिता के घर, इतनी प्रेम की पीड़ा से व्याकुल हुई पड़ी रहती थीं, कि माथे पर पुते हुए चन्दन से बाल भर जाने पर भी। तदाननश्रीरलकैः प्रसिद्धैश्चिचच्छेद सादृश्यकथाप्रसंगम्। 7/16 काई भी ऐसा न दिखाई दिया, जो उनके गुंथी हुई चोटी वाले मुख की सुन्दरता के आगे ठहर सके। 2. कच :-पुं० [कच् +अच्] बाल। पत्रजर्जर शशि प्रभालवैरे भिरुत्कचयितुं तवालकान्। 8/72 तुम चाहो तो फूलों के समान दिखाई पड़ने वाले इन चाँदनी के फूलों से ही तुम्हारे केश गूंथ दिए जाएँ। आकुलालकमरंस्त शगवान्प्रेक्ष्य भिन्न तिलकं प्रियामुखम्। 8/88 संवारे हए केश इधर-उधर छितरा गए थे और उनका तिलक भी पुंछ गया था, अपनी प्रियतमा के ऐसे मुख को देखकर प्रेमी या भगवान् शंकर मगन हो उठे। 3. केश :-पुं० [के मस्तक शेते। शी+अच्। अलुक् समासः] बाल। महार्ह शय्या परिवर्तन च्युतैः स्वकेश पुष्पैरपि या स्मद्यते। 5/12 अपने पिता के घर पर ठाठ-बाट से सजे हुए पलँग पर करवटें लेते समय, अपने बालों से झड़े हुए फूलों के दबने से, जो पार्वती सी कर उठती थीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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