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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 546 कालिदास पर्याय कोश रागेण बालारुणकोमलेन चूत प्रवालोष्ठमलं चकार। 3/30 प्रातः काल के सूर्य की लाली से चमकने वाले आम की कोपलों से अपने ओठ रंग लिए हों। अकारि तत्पूर्व निबद्धया तया सरागमस्या रसनागुणास्पदम्। 5/10 पहले पहल तगड़ी पहनने से उनकी सारी कमर लाल पड़ गई थी। विसृष्टरागादधरान्निवर्तित स्तनांग रागारुणि ताच्च कन्दुकात्। 5/11 कहाँ तो वे अपने हाथों से ओठ रंगा करती थीं और स्तन के अंगराग से लाल रंगी हुई गेंद खेला करती थीं। लोहित :-क्ली० [रुह्यते इति। रुह+ रुहेस्श्चलो वा' इति इतन्, रस्य लत्वम्] लाल, लाल रंग का। विकुंचित भूलतमाहिते तया विलोचने तिर्यगुपान्त लोहिते। 5/74 उनकी आँखें लाल हो गई और उन्होंने भौंहे तानकर उस ब्राह्मण की ओर आँखें तरेरकर देखा। लोहिता यति कदाचिदातये गन्धमादन वनं व्यगाहत। 8/28 गन्धमादन पर्वत पर जा पहुँचे, उस समय सांझ हो चली थी और सूर्य लाल-लाल दिखाई पड़ रहे थे। लोहितार्कमणि भाजनार्पितं कल्पवृक्ष मधु बिभ्रति स्वयम्। 8/75 तुम्हें यहाँ बैठी हुईं देखकर लाल सूर्यकान्त मणि के प्याले में कल्पवृक्ष की मदिरा लिए हुए स्वयं। 7. शोण :-पुं० [शोण वर्णे+ अच्] लाल रंग। न्यस्तक्षरा धातुरसेन यत्र भूर्जत्व चः कुंजर बिंदु शोणाः। 1/7 जिन भोजपत्रों पर लिखे हुए अक्षर, हाथी की सूंड पर बनी हुई लाल बुंदकियों जैसे दिखाई पड़ते थे। अर्चि 1. अर्चि :-स्त्री०,क्ली० [अर्च+इसि] अग्निशिखा। स्फुरन्नुदर्चिः सहसा तृतीया दक्ष्णः कृशानुः किल निष्पपात। 3/71 झट उनका वह तीसरा नेत्र खुला और उसमें से सहसा जलती हुई आग की लपटें निकल पड़ीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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