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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसभव 525 6. समीर :-पुं० [सम्यगीर्ते गच्छतीति । सम्+ईर् गतौ कम्पते च + क] वायु। यः पूरयन्कीचकरन्ध्रभागान्दरीमुखोत्पेन समीरणेन। 1/8 इस पहाड़ पर ऐसे छेद वाले बाँस बहुतायत से होते हैं, जो वायु भर जाने पर बजने लगते हैं। समीरणो नोदयिता भवेति व्यादिश्यते केन हुताशः। भला पवन को यह थोड़ी ही कहा जाता है, कि तुम जाकर आग की सहायता करो। अनुग्रह 1. अनुग्रह :- कृपा, दया। अनुग्रह संस्मरण प्रवृत मिच्छामि संवर्धितमाज्ञया ते।।3/3 मुझे स्मरण करके आपने जो कृपा की है, उसे मैं आपकी आज्ञा का पालन करके और भी बढ़ाना चाहता हूँ। 2. प्रसाद :-पुं० [प्र+सद्+घञ्] अनुग्रह। त्व प्रसादात्कुसुमायुधोऽपि सहायमेकं मधुमेवलब्ध्वा । 3/10 आपकी कृपा से तो मैं केवल वसन्त को अपने साथ लेकर अपने फूल के बाणों से ही। अपर्णा 1. अद्रिसुता :-पार्वती। पशुपतिरपि तान्यहानि कृच्छ्रादगमयदद्रिसुतासमागमोत्कः।। 6/95 पार्वतीजी से मिलने के लिए महादेवजी इतने उतावले हो गए, कि तीन दिन भी उन्होंने बड़ी कठिनाई से काटे। 2. अपर्णा :-स्त्री० [नास्ति पर्णं तपस्यायां पर्णभक्षणवृतिर्वा यस्याः सा। टाप्] पार्वती, दुर्गा। तदप्यपाकीर्ण प्रियंवदां वदन्त्यपर्णेति च तां पुराविदः। 5/28 इसलिए मधुर भाषिणी पार्वती जी को पण्डित लोग पीछे पत्ते न खाने वाली अपर्णा भी कहने लगे। स्थाने तपो दुश्चरमेतदर्थमपर्णया पेलवयापि तप्तम्।। 7/65 वे सोचने लगीं कि ऐसे वर के लिए सुकुमार पार्वती का तप करना ठीक ही था। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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