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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 520 कालिदास पर्याय कोश 50. शूलभृत :-महादेव, शंकर, शिव। ततो गणैः शूलभृतः पुरोगैरुदीरितो मंगल तूर्य घोषः। 7/40 महादेव जी के आगे-आगे चलने वाले गणों ने जो मंगल तुरही बजाई। 5. शूलिन् :-पुं० [शूलमस्यास्तीति । शूल +इनि] शिव, शंकर, महादेव। जितेन्द्रिये शूलिनि पुष्पचापः स्वकार्यसिद्धिं पुनराशशंस । 3/57 कामदेव के मन में जितेन्द्रिय महादेव को वश में करने की आशा फिर हरी हो उठी। ते हिमालयमामन्त्र्य पुनः प्राप्य च शूलिनम्। 6/94 हिमालय से विदा होकर उन्होंने महादेवजी से जाकर बताया। शूलिनः करतलद्वयेन सा संनिरुध्य नयने हृतांशुका। 8/7 जब कभी अकेले में शिवजी इनके कपड़े खींचकर इन्हें उघाड़ देते, तो ये अपनी दोनों हथेलियों से शिवजी के दोनों नेत्र बन्द कर लेतीं, जिससे वे देख न पावें। शीतलेन निरवापयत्क्षणं मौलिचन्द्रशकलेन शूलिनः। 8/18 फिर तत्काल महादेव जी के सिर पर बसे हुए चन्द्रमा पर ज्यों ही ओंठ रखतीं, त्यों ही उन्हें ऐसी ठण्डक मिलती कि उनकी सब पीड़ा जाती रहती। सा बभूव वशवर्तिनी द्वयोः शूलिनः सुवदना मदनस्य च। 8/79 मदिरा पीने से सुन्दर मुख वाली पार्वती जी ऐसी मद में चूर होकर शंकर जी की गोद में गिरी, कि उनकी लाज जाती रही। 52. शंकर :-पुं० [शं कल्याणं सुखं वा करोतीति । शम्+कृ+'शमिधातो: संज्ञायाम् इति अच] शिव, महादेव। नाभिदेश नाहितः सकम्पया शंकरस्य रुरुधे तया करः। 8/4 जब शंकर जी अपने हाथ उनकी नाभि की ओर बढ़ाते, तो पार्वती जी काँपते हुए उनका हाथ थारा लेती। एव मालि निगृहीत साध्वसं शंकरो रहसि सेव्यतामिति। 8/5 तुम डरना मत और जैसे-जैसे हम सिखाती हैं, वैसे ही वैसे अकेले में शंकर जी के पास रहना। शिष्यतां निधुवनोपदेशिनः शंकरस्य रहसि प्रपन्नया। 8/17 पार्वती ने शंकरजी से अकेले में जो कामकला की शिक्षा ली थी। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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