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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 518 कालिदास पर्याय कोश रुद्राणामपि मूर्धानः क्षत हुँकार शंशिनः। 2/26 ग्यारह रुद्रों के माथे भी यह बता रहे हैं, कि उनकी हुंकार करने की शक्ति भी जाती रही है। सपदि मुकुलिताक्षी रुद्र संरम्भभीत्या दुहितर मनुकम्प्यामदिरादाय दीर्ध्याम्। 3/76 तत्काल हिमालय भी वहाँ आ पहुँचे और महादेव जी के क्रोध से डरकर आँख बन्द करके जाती हुई अपनी दुखी कन्या को हिमालय ने गोद में उठा लिया। 38. विभु :-महादेव, शिव, शंकर। स एवं वेषः परिणेतुरिष्टं भावान्तरं तस्य विभोः प्रपेदे। 7/3 उन्होंने अपनी शक्ति से अपने ही वेश को विवाह के योग्य बना लिया। 39. विरुपाक्ष :-पुं० [विरूपे अक्षिणी यस्य । 'सक्थ्यक्ष्णोः स्वाङ्गात् षच्' इति षच्] महादेव, शिव। वपु विरूपाक्षमलक्ष्य जन्मता दिगम्बर त्वेन निवेदितं वसु। 5/72 और देखिए, तीन तो उनके आँख, जन्म का कोई ठिकाना नहीं, और उनके सदा नंगे रहने से ही आप समझ सकती हैं कि उनके घर में क्या होगा। या नः प्रीतिर्विरूपाक्ष त्वदनुध्यानसंभवा।। 6/2 हे शिवजी ! आपने हमको जो स्मरण किया है, उससे हमारे मन में आपके लिए जो प्रेम उत्पन्न हुआ है। 40. विश्वगुरु :-महादेव, शिव। सुतासंबन्ध विधिना भव विश्वगुरोर्गुरुः। 6/83 उनसे अपनी पुत्री का विवाह करके आप उन महादेव के भी बड़े बन जाते। 41. विश्वात्मन :-महादेव, शिव। अथ विश्वात्मने गौरी संदिदेश मिथः सखीम्। 6/1 तब पार्वतीजी ने, घर-घर में रमने वाले शंकर जी को, अपनी सखी के मुँह से धीरे से कहलाया। 42. वृषध्वज :-महादेव, शिव। शैलराज भवने सहोमया मास मात्रम वसदृषध्वजः। 8/20 हिमालय के घर पर उमा के साथ रहते हुए महोदवजी ने एक महीना बिता दिया। 43. वृषभध्वज :-महादेव, शिव। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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