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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 515 व्यकीर्यंत त्र्यम्बक पाद मूले पुष्पोच्चयः पल्लवभंगभिन्नः। 3/61 फिर अपने हाथ से चुने हुए पत्तों के टुकड़े मिले हुए वासन्ती फूलों का ढेर शंकरजी के पैरों पर चढ़ा दिया। 22. त्रिनेत्र :-महादेव, शिव, शंकर। अयुक्त रूपं किमतः परं वद त्रिनेत्रव सः सुलभं तवापि यत्। 5/69 यदि शिवजी आपको मिल भी जायें, तो इससे बढ़कर अच्छी और क्या बात होगी। 23. त्रिलोकनाथ :-महादेव, शिव, शंकर। अकिंचनः सम्प्रभवः स संपदा त्रिलोक नाथः पितृ सद्मगोचरः। 5/77 पास में कुछ न होते हुए भी सारी सम्पत्तियाँ उन्हीं से उत्पन्न होती हैं, श्मशान में रहते हुए भी, वे तीनों लोकों के स्वामी हैं। 24. त्रिलोचन :-महादेव। प्रति ग्रहीतुं प्रणयिप्रिय त्वात्रिलोचनस्तामुपचक्रमे च । 3/66 शिवजी ने भक्त पर प्रेम करने के नाते पार्वती जी की वह माला ली ही थी। वरेषु यद्वाल मृगाक्षि मृग्यते तदस्ति किं व्यस्तमपि त्रिलोचने। 5/72 हे मृग के छौने की आँख जैसी आँख वाली पार्वती जी ! वर में जो गुण खोजे जाते हैं, उनमें से एक भी तो महादेवजी में नहीं है। 25. दिगम्बर :-महादेव, शिव। वपुर्विरूपाक्षमलक्ष्य जन्मता दिगम्बर त्वेन निवेदितं वसु।। 5/72 और देखिए, जन्म का उनके कोई ठिकाना नहीं, और उनके सदा नंगे रहने से ही आप समझ सकती होंगी कि उनके घर में क्या होगा। 26. देवदेव :-महादेव, शिव। अयाचितारं नहि देवदेवमद्रिः सुतां ग्राहयितुं शशाक। 2/52 पर हिमालय ने सोचा कि जब तक स्वयं महादेवजी ही कन्या मांगने नहीं आते, तब तक अपने आप उन्हें कन्या देने जाना ठीक नहीं जंचता। 27. नीलकंठ :-पुं० [नील: नीलवर्णः कण्ठो यस्य] शिव। क्व नीलकंठ व्रजसीत्यलक्ष्य वागसत्यकंठार्पित बाहु बंधना। 5/547 हे नीलकण्ठ ! तुम कहाँ जा रहे हो और उसी सपने के धोखे में ये अपने हाथ ऐसे फैलाती थीं, मानो शिवजी के गले में हाथ डालकर उन्हें रोक रही हों। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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