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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 876 कालिदास पर्याय कोश कर्णेषु च प्रवरकाञ्चनकुण्डलेषु नीलोत्पलानि विविधानि निवेशयन्ति। 3/19 अपने जिन कानों में वे सोने के बढ़िया कुंडल पहना करती थीं, उनमें उन्होंने अनेक प्रकार के नीले कमल लटका लिए हैं। कर्णेषु योग्यं नवकर्णिकारं चलेषु नीलेष्वलकेष्वशोकम्। 6/6 कानों में लटके हुए सजीले कनैर के फूल और चंचल, काली, धुंघराली लटों में अशोक के फूल। 2. श्रवण - [श्रु + ल्युट्] कान। कनककमलकान्तैश्चारुताम्राधरोष्ठैः श्रवणतटनिषक्तैः पाटलोपान्त नेत्रैः। 5/13 सुंदर लाल-लाल ओठों वाले, लाल कोरों से सजी हुई कानों के तट तक फैली हुई बड़ी-बड़ी आँखों वाले सुनहले कमल के समान चमकने वाले। 3. श्रुति - [श्रु + क्तिन] कान। विपत्रपुष्पां नलिनी समुत्सुका विहाय भृङ्गाः श्रुतिहारिनिस्वनाः। 2/14 कानों को सुहाने वाली मीठी तानें लेकर गूंजते हुए भौरे उस कमल को छोड़-छोड़ कर चले जा रहे हैं, जिसके पत्ते और फूल झड़ गए हैं। 4. श्रोत्र - [श्रूयतेऽनेन - श्रु करणे + ष्ट्रन] कान। उत्कूजितैः परभृतस्य मदाकुलस्य श्रोत्रप्रियैर्मधुकरस्य च गीतनादैः। 6/34 मदमस्त कोकिल की कूक से और कानों में भाने वाली भौंरों की मनभावनी गुंजारों से। सर 1. तोयाशय - झील, सरोवर, ताल, तालाब। श्रियमतिशयरूपां व्योम तोयाशयानां वहति विगतमेघं चन्द्रतारावकीर्णम्। 3/21 खिले हुए चंद्रमा और छिटके हुए तारों से भरा हुआ आजकल का खुला आकाश उन तालों के सामन दिखाई पड़ रहा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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