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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 779 कोकिल 1. कोकिल - [ कुक् + इलच्] कोयल। पुँस्कोकिलश्चूतरसासवेन मत्तः प्रियां चुम्बतिरागहष्टः। 6/16 यह नर कोयल आम की मंजरियों के रस में मदमस्त होकर अपनी प्यारी को बड़े प्रेम से प्रसन्न होकर चूम रहा है। यत्कोकिलः पुनरयं मधुरैर्वचोभियूंना मनः सुवदनानिहितं निहन्ति। 6/22 कोयल भी अपनी मीठी कूक सुना-सुना कर अपनी प्यारियों के मुखड़ों पर रीझे हुए प्रेमियों के हृदय को टूक-टूक कर रही है। पँस्कोकिलैः कलवचोभिरुपात्तहर्षेः कूजद्भिन्मदकलानि वचांसि भृङ्गैः। 6/23 मीठे स्वर में कूकने वाले नर कोयलों ने और मस्ती से गूंजते हुए भौंरों ने। समदमधुकराणां कोकिलानां नादैः कुसुमित सहकारैः कर्णिकारैश्च रम्यः। 6/29 कोयल और मदमाते भौरों के स्वरों से गूंजते हुए बोरै हुए आम के पेड़ों से भरा हुआ और मनोहर कनैर के फूलों वाले। रम्यः प्रदोषसमयः स्फुटचन्द्रभासः पुँस्कोकिलस्य विरुतं पवनः सुगन्धिः। 6/35 लुभावनी साँझें, छिटकी हुई चाँदनी, कोयल की कूक, सुगंधित पवन। मलय पवनविद्धः कोकिलालाप रम्यः सुरभिमधुनिषेकाल्लब्धगन्ध प्रबन्धः। 6/37 मलय के वायु वाला, कोकिल की कूक से जी लुभाने वाला, सदा सुगंधित मधु बरसाने वाला। 2. परभृत - [ पृ० + अप्, कर्तरि अच् वा + त:] कोयल। आकम्प्यन्कुसुमिताः सहकारशाखा विस्तारयन्परभृतस्य वचांसि दिक्षु। 6/24 आजकल मंजरियों से लदी आम की डालों को हिलाने वाला और कोयल के संदेशों को चारों ओर फैलाने वाला पवन। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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