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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मेघदूतम् www. kobatirth.org सोऽतिक्रांतः श्रवणविषयं लोचनाभ्यां दृष्टः । उ० मे० 45 दूर होने से उस प्यारे की बातचीत कानों से न सुन सकती हो, और न उसे आँख भर देख सकती हो। संपद 1. निधि [नि + धा + ल्युट् ] धन, दौलत, घर, आशय । अक्षय्यान्तर्भवननिधयः प्रत्यहं रक्तकण्ठैः । उ० मे० 10 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अथाह संपत्ति वाले कामी लोग ऊँचे स्वर में मीठे गलों से गान करने वाले किन्नरों के साथ बैठे हुए। 2. संपद 745 [सम् + पद् + क्विप्] धन, दौलत, समृद्धि । आपन्नातिर्प्रशमनफलाः संपदो ह्युत्तमानाम् । पू० मे० 57 भले लोगों के पास जो कुछ धन होता है, वह दीन-दुखियों का दुःख मिटाने के लिए ही तो होता है। - समर 1. संयुग [ सम् + युज् + क्विन्] लड़ाई, संग्राम, युद्ध । योधाग्रण्यः प्रतिदशमुखं संयुगे तस्थिवांसः । उ० मे० 13 जो उन्होंने रावण से लड़ते हुए अपने शरीर पर खाये थे । 2. समर [ सम् + ऋ + अप्] संग्राम, युद्ध, लड़ाई । बन्धुप्रीत्या समर विमुखो लाङ्गली याः सिषेवे । पू० मे० 53 कौरवों और पांडवों की लड़ाई (महाभारत युद्ध) में दोनों पर एक सा प्रेम करने वाले बलराम जी जिसका जल पीते थे । साधु For Private And Personal Use Only 1. सताम - गुणी, भद्र, सज्जन । प्रयुक्तं हि प्रणयिसतामीप्सितार्थ क्रियैव । उ० मे० 57 सज्जनों की रीति ही यह है कि वे काम पूरा करके ही उत्तर दे डालते हैं।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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