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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 744 कालिदास पर्याय कोश श्यामः पादो बलिनियमनाभ्युद्यतस्येव विष्णोः। पू० मे0 61 जैसे बलि को छलने के समय भगवान विष्णु का सांवला चरण लंबा और तिरछा हो गया था। पत्रश्यामा दिनकरहयस्पर्धिनो यत्र वाहाः। उ० मे० 13 पत्ते के समान साँवले वहाँ के घोड़े, सूर्य के घोड़ों को भी कुछ नहीं समझते। श्रवण 1. कर्ण - [कर्ण्यते आकर्ण्यते अनेन - कर्ण + अप्] कान। गण्डस्वेदापनयनरुजावलान्त कर्णोत्पलानां। पू० मे० 28 जिनके कानों में लटके हुए कमल की पंखड़ियों के कनफूल उनके गालों पर बहते हुए पसीने से लग-लगकर मैले हो गए होंगे। भवानी पुत्र प्रेम्णा कुवलयदल प्राप्ति कर्णे करोति। पू० मे० 48 पार्वती जी, पुत्र पर प्रेम दिखलाने के लिए अपने उन कानों पर सजा लेती हैं, जिन पर वे कमल की पंखड़ी सजाया करती थीं। चूडापाशे नवकुरबकं चारु कर्णे शिरीषं। उ० मे० 2 अपने जूड़े में नये कुरबक के फूल खोंसती हैं, अपने कानों पर सिरस के फूल रखती हैं। पत्रच्छेदैः कनक कमलैः कर्णविभ्रंशिभिश्च। उ० मे० 11 पत्ते खिसककर निकल जाते हैं, कानों पर धरे हुए सोने के कमल गिर जाते हैं। कर्णे लोलः कथयितुमभूदाननस्पर्श लोभात्। उ० मे0 45 वह तुम्हारा मुँह चूमने के लोभ से तुम्हारे कान में ही कहने को तुला रहता था। 2. श्रवण - [श्रु + ल्युट्] कान। तच्छ्रुत्वा ते श्रवणसुभगं गर्जितं मानसोत्काः। पू० मे० 11 वही कानों को भला लगने वाला तुम्हारा गरजना सुनकर मानसरोवर जाने को उतावले (राजहंस)। क्रीडालोलाः श्रवण पुरुषैर्गतितर्भाययेस्ताः। पू० मे० 65 उन खिलाड़ी देवांगनाओं से छुटकारा पाने के लिए कान फाड़ने वाला अपना गर्जन सुनाकर उन्हें डरा देना। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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