SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 707 मेघदूतम् उत्पश्यामि प्रतनुषु नदीवीचिषु भ्रूविलासान्। उ० मे० 46 नदी की छोटी-छोटी लहरियों में तुम्हारी कटीली भौहें देखा करता हूँ। 3. सरित् - [स + इति] नदी। गम्भीरायाः पयसि सरितश्चेतसीव प्रसन्ने। पू० मे० 44 गंभीरा नदी के उस जल में, जो चित्त जैसा निर्मल है। 4. सलिला - [सलति गच्छति निम्नम् - सल् + इलच् + यप्] नदी, सरिता। वेणीभूत प्रतनुसलिलाऽसावतीतस्य सिन्धुः। पू० मे0 31 हे मेघ! नदी की धारा तुम्हारे बिछोह में चोटी के समान पतलो हो गई होगी। 5. स्रोतम् - [स्नु + तन्] धारा, सरिता। स्रोतोमूर्त्या भुवि परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्तिम्। पू० मे० 49 जो राजा रंतिदेव के गवालंभ यज्ञ करने की कीर्ति बनकर धरती में नदी के रूप में बह रही है। संसर्पन्त्यासपदिभवतः स्रोतसिच्छाययाऽसौ। पू० मे० 55 तब तुम्हारी चलती हुई छाया गंगा नदी की धारा में पड़कर ऐसी सुंदर लगेगी कि। नयन 1. अक्षि - [अश्नुते विषयान् - अश् + क्सि] आँख। त्वय्यासन्ने नयनमुपरिस्पन्दि शङ्के मृगाक्ष्या। उ० मे० 37 जब तुम उसके पास पहुँचोगे, तब उस मृग नयनी की वह बाईं आँख फड़क उठेगी। नयन - [नी + ल्युट्] आँख। सेविष्यन्ते नयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः। पू० मे० 10 आँखों को सुहाने वाला रूप देखकर बगुलियाँ भी आकाश में उड़कर आती होंगी। शुक्लोपाङ्गैः सजलनयनैः स्वगतीकृत्य केकाः। पू० मे० 24 जहाँ के मोर नेत्रों में आनंद के आँसू भरकर अपनी कूक से तुम्हारा स्वागत कर रहे होंगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy