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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 706 कालिदास पर्याय कोश 6. यामा - [यम् + घञ् + यप्] रात। संक्षिप्येत क्षण इव कथं दीर्घयामाः त्रियामा। उ० मे० 51 किसी प्रकार रात के लंबे-लंबे तीन पहर क्षण-भर के समान छोटे हो जाएँ। 7. रात्रि -[राति सुखं भयं वा रा + त्रिप वा ङीप] रात। तां कस्यांचिद्भवनवलभौ सुप्तपारावतायां नीत्वा रात्रिं चिर बिलसनात्खिन्नविद्युत्कलनः। पू० मे० 42 बहुत देर तक चमकते-चमकते थकी हुई अपनी प्यारी बिजली को लेकर तुम किसी ऐसे मकान के छज्जे पर रात बिता देना। शङ्करात्रौ गुरुतरशुचं निर्विनोदां सखीं ते। उ० मे० 28 मुझे डर है कि रात के लिए कुछ काम न होने से तुम्हारी सखी की रात बड़े कष्ट से बीतती होगी। स त्वं रात्री जलद शयनासन्नवातायनस्थः। उ० मे० 29 हे मेघ! इसलिए तम उसके पलँग के पास वाली खिड़की पर बैठकर परखना और रात को मेरी प्यारी के पास। नीता रात्रिः क्षण इव मया सार्धमिच्छारतैः। उ० मे०31 मेरे साथ जी भरकर संभोग करके पूरी रात क्षण भर के समान बिता देती थी। नदी 1. कुल्या - [कुल् + यत् + याप्] छोटी नदी, नदी, सरिता। इत्याख्याते सुरपतिसखः शैल कुल्या पुरीषु स्थित्वा। उ० मे० 62 यह सुनकर बादल वहाँ से चल दिया और कभी पहाड़ियों पर कभी नदियों के पास और कभी नगर में ठहरता हुआ। 2. नदी - [नद् + ङीप्] दरिया, सरिता। विश्रान्तः सन्व्रज वननदीतीर जातानि सिञ्चन्उद्यानानां नवजलकणैर्वृथिकाजालकानि। पू० मे० 28 थकावट मिटकर, तुम जंगली नदियों के तीरों पर उपवनों में खिली हुई जूही की कलियों को अपने जल की फुहारों से सींचते हुए। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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