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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 486 कालिदास पर्याय कोश तथाहि शेषेन्द्रिय वृत्तिरासां सर्वात्मना चक्षुरिव प्रविष्य। 7/64 मानो उनकी सब इन्द्रियाँ आकर आँखों में ही समा गई हों। तथा प्रवृद्धाननचन्द्रकान्त्या प्रफुल्य चक्षुः कुमुदः कुमार्या। 7/74 चन्द्रमा के समान मुख वाली पार्वती जी को देखकर, शंकर जी के नेत्र रूपी कुमुद खिल गए। चक्षुरुन्मिषति सस्मितं प्रिये विद्यताहतमिव न्यमीलयत। 8/3 इतने में ही शिवजी मुस्कराकर आँखें खोल देते और ये चट इस फुर्ती से अपनी आँखें मींच लेती, मानो बिजली की चकाचौंध से आँखें मिच गई हों। आननेन न तु तावदीश्वरः चक्षुषा चिरमुमा मुखं पपौ। 8/80 पार्वती जी के उस मुख को भगवान् शंकर ने अपने मुँह से चूमा नहीं, वरन बहुत देर तक अपनी आँख से ही उनकी सुन्दरता को पीते रहे। 3. नयन :- [नी+ल्युट] नेत्र, आँख। स द्विनेत्रं हरेश्चक्षुः सहस्र नयनाधिकम्। 2/30 जिनके दो नेत्रों मे ही इन्द्र के सहस्र नेत्रों से बढ़कर देखने की शक्ति थी। मधुना सह सस्मितां कथां नयनोपान्त विलोकितं च तत्। 4/23 वसन्त के साथ हँस-हँस कर बातें करना और बीच-बीच में मेरी ओर तिरक्षी चितवन से देखना। यथातदीयैर्न यनैः कुतूहलात्पुरः सखीनाममिमीत लोचने। 5/15 अपनी सखियाँ के आगे उन्हें लाकर वे उन हरिणों के नेत्रों से अपने नेत्र मापा करती थीं। तस्याः सुजातोत्पल पत्र कान्ते प्रसीधिकाभिनयने निरीक्ष्य। 7/20 सिंगार करने वाली स्त्री ने पार्वती जी की नीले कमल जैसी बड़ी-बड़ी काली-काली आँख में। तमेकदृश्यं नयनैः पिबन्त्यो नार्यों न जग्मुर्विषयान्तराणि 17/64 नगर की स्त्रियाँ सब सुध-बुध भूलकर इस प्रकार एक टक देखती हुईं, उन्हें अपने नेत्रों से पी रही थीं। चुम्बनादलकचूर्णदूषितं शंकरोऽपि नयनं ललाटजम्। 8/19 इसी प्रकार चुम्बन लेते समय, जब पार्वती जी के केशों का चूर्ण झड़कर शिवजी के तीसरे नेत्र में पड़ता, तो वह नेत्र दुखने लगता। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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