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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 485 कुमारसंभव नाभि प्रविष्टाभरण प्रभेण हस्तेन तस्थाववलम्ब्य वासः। 7/60 बिना बँधे ही कपड़े को हाथ से पकड़े जो खड़ी हुई, तो उसके हाथ के कंगन के रत्न की चमक से उसकी नाभि चमकती हुई दिखाई देने लगी। अक्षि 1. अक्षि :-क्ली० [अश्नुते विषयान्-अश्+क्सि] आँख, नेत्र। प्रवातनीलोत्पलनिर्विशेषमधीर विप्रेक्षित मायाताक्ष्या। 1/46 उन बड़ी-बड़ी आँखों वाली की चितवन, आँधी से हिलते हुए नीले कमलों के समान चंचल थी। य उत्पलाक्षि प्रचलैर्विलोचनैस्तवासि सादृश्यमिव प्रयुञ्जते। 5/35 हे कमलनयनी, उनकी [हिरणों की] आँखें आपकी आँखों के समान ही चंचल तदीषदारुणगण्डलेखमुच्छ्वासि कालजनं रागमक्ष्णोः। 7/82 पार्वती जी के गाल कुछ लाल हो गए, मुँह पर पसीने की बूंदें छा गईं, आँखों का काला आँजन फैल गया। 2. चक्षु :-क्ली० [चष्टे पश्यत्यनेनेति । चक्ष+ चक्षेः शिच्च' इति उसि, शिलेनानार्थ धातुकत्वात् व्याजादेशाभावः] आँख, नेत्र । स द्विनेत्रं हरेश्चक्षुः सहस्रनयनाधिकम्। 2/30 जिनके दो नेत्रों में ही, इन्द्र के सहस्र नेत्रों से भी बढ़कर देखने की शक्ति थी। उमां स पश्यन्नृजुनैव चक्षुषा प्रचक्रमे वक्तुमनुज्झितक्रमः। 5/32 पार्वती जी की ओर एकटक देखते हुए बिना रुके बोलना प्रारम्भ कर दिया। करोति लक्ष्यं चिरमस्य चक्षुषो न वक्रमात्मीय मरालपक्ष्मणः। 5/49 आपकी कटीली भौंहो वाले सुन्दर नैनों का लक्ष्य बनाना चाहिए था। तस्याः कपोले परभागलाभाद्वबन्ध चक्षूषि यव प्ररोहः। 7/17 गोरे-गोरे गाल इतने सुन्दर लगने लगे, कि सबकी आँखें बरबस उनकी ओर खिंची जाती थीं। न चक्षुषोः कान्ति विशेष बुद्धया कालाजनं मंगलमित्युपात्तम। 7/20 नहीं कि, आँजन से उनकी आँखों की कुछ शोभा बढ़ेगी, वरन इसलिए कि वह भी मंगल सिंगार की एक चलन थी। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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