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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेघदूतम् 669 वहाँ जल बरसा चुको, तो जंगली हाथियों के सुगंधित मद में बसा हुआ और जामुन की कुंजों में बहता हुआ रेवा का जल पीकर, आगे बढ़ना। उर्मि 1. उर्मि - लहर, तरंग। तीरोपान्तस्तनितसुभगं पास्यसि स्वादु यस्मात् सभ्रूभङ्गमुखमिव पयो वेत्रवत्याश्चलोर्मि। पू० मे० 26 जब तुम सुहावनी, मनभावनी, और नाचती हुई लहरों वाली वेत्रवती नदी के तीर पर गर्जन करके उसका मीठा जल पीओगे तब, तुम्हें ऐसा लगेगा मानो तुम किसी कटीली भौंहों वाली कामिनी के ओठे का रस पी रहे हो। गौरी वक्त्रभृकुटिरचनां या विहस्येवफेनैः शंभोः केशग्रहणमकरादिन्दु लग्नोर्मिहस्ता। पू० मे० 54 वे इस फेन की हँसी से खिल्ली उड़ाती हुई उन पार्वतीजी का निरादर कर रही हों, जो सौतिया डाह से गंगाजी पर भौंहे तरेरती हों, इतना ही नहीं, वे अपनी लहरों के हाथ चन्द्रमा पर टेककर शिवजी के केश पकड़कर। वीचि - [वे + ईचि, डिच्च] लहर। वीचिक्षोभस्तनितविहगश्रेणिकाञ्चीगुणायाः संसर्पन्त्या:स्खलितसुभगं दर्शितावर्तनाभेः। पू० मे० 30 जिसकी उछलती हुई लहरों पर पक्षियों की चहचहाती हुई पाँतें ही करघनी-सी दिखाई देंगी और जो इस सुन्दर ढंग से बह रही होगी कि उसमें पड़ी हुई भंवर तुम्हें उसकी नाभि जैसी दिखाई देगी। उत्पश्यामि प्रतनुषु नदीवीचिषु भ्रूविलासान् हतैकस्मिन्क्वचिदपि न ते चण्डि सादृश्यमस्ति। उ० मे० 46 नदी की छोटी-छोटी लहरियों में तुम्हारी कटीली भौंहे देखा करता हूँ। तो भी हे चंडी! मुझे दुःख है कि इनमें से कोई एक भी तुम्हारी बराबरी नहीं कर पाता। कनक 1. कनक- [कन् + वुन्] सोना। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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