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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 666 कालिदास पर्याय कोश उसके जल में बसे हुए हंस इतने सुखी हैं कि मानसरोवर के इतने पास होते हुए भी तुम्हें देखकर वे वहाँ नहीं जाना चाहेंगे। 6. धारा - [धार + टाप्] पानी की धारा, जलधारा, बौछार, वर्षा की तेज घड़ी। राजन्यानां सितशर शतैर्यत्र गाण्डीवधन्वा धारापातैस्त्वमिव कमलान्यभ्यवर्षन्मुखानि। पू० मे० 52 गांडीवधारी अर्जुन ने अपने शत्रु राजाओं के मुखों पर उसी प्रकार अनगिनत बाण बरसाए थे, जैसे कमलों पर तुम अपनी जलधारा बरसाते हो। धारासिक्तस्थलसुरभिणस्त्वन्मुखस्यास्य बाले दूरीभूतं प्रतनुमपि मां पञ्चबाणः क्षिणोति। उ० मे० 48 तुम्हारे उस मुख से दूर रहने के कारण सूखा जा रहा हूँ, जिसमें से ऐसी सोंधी गंध आती थी, जैसे पानी पड़ने पर धरती से आती है, उस पर यह पाँच बाणों वाला कामदेव मुझे और भी सताए जा रहा है। 7. पय - [पय् + असुन्, पा + असुन्, इकारादेश्च ] पानी। खिन्नः खिन्नः शिखरिषु पदं न्यस्य गन्तासि यत्र क्षीणः क्षीणः परिलघुपयः स्रोतसां चोपभुज्य। पू० मे० 13 कभी थकने लगो, तो मार्ग में पड़ती हुई पर्वत की चोटियों पर ठहरते जाना, और जब तुम पानी की कमी से दुबले पड़ने लगो तब झरनों का हल्का-हल्का जल पीते हुए जाना। तीरोपान्तस्तनितसुभगं पास्यसि स्वादु यस्मात्सभ्रूभङ्गं मुखमिव पयो वेत्रवत्याश्चलोर्मि। पू० मे० 26 जब तुम वहाँ की सुहावनी, मनभावनी और नाचती हुई लहरों वाली वेत्रवती नदी के तीर पर गर्जन करके उसका मीठा जल पीओगे, तब तुम्हें ऐसा लगेगा मानो तुम किसी कटीली भौंहों वाली कामिनी के ओठों का रस पी रहे हो। गम्भीरायाः पयसि सरितश्चेतसीव प्रसन्ने छायात्माऽपि प्रकृति सुभगो लप्स्यते ते पुवेशम्। पू० मे० 44 तुम्हारे सहज-सलोने शरीर की परछाईं गंभीरा नदी के उस जल में अवश्य दिखाई देगी, जो चित्त जैसा निर्मल है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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