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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेघदूतम् 665 वहाँ जल बरसा चुको, तो जंगली हाथियों के सुगंधित मद में बसा हुआ और जामुन की कुंजों में बहता हुआ रेवा का जल पीकर आगे बढ़ना। दृष्ट्वा यस्यांविपणिरचितान्विदुमाणां च भङ्गान्संलक्ष्यन्ते सलिलनिधय स्तोयमात्रावशेषः। पू० मे० 34 हाटों में नई घास के समान नीले और चमकीले नीलम बिछे दिखाई देंगे। उन्हें देखकर यही जान पड़ेगा कि रत्न तो सब यहाँ निकालकर ला रखे गए हैं और समुद्र में केवल पानी ही पानी बचा छोड़ दिया गया है। धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर्गन्धवत्सात्योस्तोयक्रीडानिरत युवतिस्नानतिक्तैर्मरुद्भिः। पू० मे० 37 जल-विहार करने वाली युवतियों के स्नान करने से महकता हुआ और कमल के गंध में बसी हुई गंधवती नदी की ओर से आनेवाला पवन, मंदिर के उपवन को बार-बार झुला रहा होगा। सौदामन्याकनक निकष स्निग्धयादर्शयो:तोयोत्सर्गस्तनित मुखरो मास्मभूर्विक्लवास्ताः। पू० मे० 41 तुम कसौटी में सोने के समान दमकने वाली अपनी बिजली चमका कर उन्हें ठीक-ठीक मार्ग दिखा देना। पर देखो! तुम गरजना-बरसना मत! नहीं तो वे घबरा उठेगी। तत्रावश्यं वलय कुलिशोधट्टनोद्गीर्ण तोयं नेष्यन्ति त्वां सुरयुवतयो यन्त्रधारागृहत्वम्। पू० मे० 65 उस पर्वत पर बहुत सी अप्सराएँ अपने नग-जड़े कंगनों की नोंक तुम्हारे शरीर में चुभोकर तुम्हारे शरीर से जल धाराएँ निकाल लेंगी और तुम्हें फुहारे का घर बना डालेंगी। अन्तस्तोयं मणिमयभुवस्तुंगमभ्रंलिहानाः प्रासादास्त्वां तुलयि तुमुलं यत्र तैस्तैर्विशेषैः। उ० मे० 1 यदि तम्हारे भीतर नीला जल है तो उनकी धरती भी नीलम से जडी हुई है और यदि तुम ऊँचे पर रहते हो तो उनकी अटारियाँ भी आकाश चूमती हैं। यस्यास्तोये कृतवसतयो मानसं संनिकृष्टं नाध्यास्यान्ति व्यपगतशुचस्त्वामपि प्रेक्ष्य हंसाः। उ० मे० 16 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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