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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 662 कालिदास पर्याय कोश ज्योतिर्लेखावलयि गलितं यस्य बहँ भवानी पुत्रप्रेम्णा कुवलयदलप्रापि कर्णे करोति। पू० मे० 48 उस मोर के झड़े हुए उन पंखों से चमकीली किरणे निकल रही होंगी, जिन्हें पार्वतीजी, पुत्र पर प्रेम दिखलाने के लिए अपने उन कानों पर सजा लेती हैं, जिन पर वे कमल की पंखड़ी सजाया करती थीं। त्वय्यासन्ने नयनमुपरिस्पन्दि शङ्के मृगाक्ष्या मीनक्षोभाञ्चलकुवलयश्री तुलामेष्यतीति। उ० मे० 37 उसके पास पहुँचोगे तो उस मृगनयनी की बाईं आँख फड़क उठेगी। फड़कती हुई बाईं आँख उस नीले कमल जैसी सुन्दर दिखाई देगी, जो मछलियों के इधर-उधर आने-जाने से काँप उठा करता है। 5. पद्म- [पद् + मन्] कमल। यत्रोन्मत्तभ्रमरमुखराः पादपा नित्यपुष्पा हंसश्रेणीरचित रशना नित्यपद्मा नलिन्यः। उ० मे० 3 वहाँ सदा फूलने वाले ऐसे बहुत से वृक्ष मिलेंगे, जिन पर मतवाले भौरे गुनगुनाते होंगे। वहाँ बारहमासी कमल और कमलिनियों को हंसों की पांते घेरे रहती हैं। एभिः साधो! हृदय निहितैर्लक्षणैर्लक्षयेथा द्वारोपान्ते लिखितपुषौ शङ्खपद्मौ च दृष्ट्वा। उ० मे0 20 हे साधु! यदि तुम मेरे बताए हुए ये चिह्न भली-भांति स्मरण रखोगे और मेरे द्वार पर शंख और पद्म (कमल) के चित्र बने हुए देख लोगे। उदक 1. अपा - जल, पानी। कृत्वा तासामभिगममपां सौम्य सारस्वती नामन्तः शुद्धस्त्वमपि भविता वर्णमात्रेण कृष्णः। पू० मे० 53 जिस सरस्वती नदी का जल पीते थे, वही जल यदि तुम भी पी लोगे तो बाहर से काले होने पर भी तुम्हारा मन उजला हो जाएगा। 2. अम्भ - [आप् (अम्भ) + असुन्] जल, पानी। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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