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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org मेघदूतम् 661 जब जल्दी-जल्दी पैर बढ़ाकर जाने लगती हैं, उस समय उनकी चोटियों में गुंथे हुए कल्पवृक्ष के फूल और पत्ते खिसककर निकल जाते हैं कानों पर धरे हुए सोने के कमल गिर जाते हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाक्षारागं चरणकमलन्यास योग्यं च यस्या मेकः सूते सकलमबलामण्डनं कल्पवृक्षः । उ० मे० 12 चरण कमलों में लगाने का महावर आदि स्त्रियों के सिंगार की जितनी वस्तुएँ हैं, सब अकेले कल्पवृक्ष से ही मिल जाती हैं। वापी चास्मिन्मरकतशिलाबद्धसोपान मार्गा हेमैश्छन्नाविकच कमलैः स्निग्धवैदूर्यनालैः । उ० मे० 16 एक बावड़ी मिलेगी, जिसकी सीढ़ियों पर नीलम जड़ा हुआ है और जिसमें चिकने वैदूर्य मणि की डंठल वाले बहुत से सुनहरे कमल खिले हुए होंगे। क्षामच्छायं भवनमधुना मद्वियोगेन नूनं सूर्यापाये न खलु कमलं पुष्यति स्वामभिख्याम् । उ० मे० 20 मेरे बिना वह भवन बड़ा सूना-सा और उदास सा दिखाई देता होगा, क्योंकि सूर्य के छिप जाने पर तो कमल उदास हो ही जाता है । मेघस्यास्मिन्नतिनिपुणता बुद्धिभावः कवीनां नत्वार्यायाश्चरणकमलं कालिदासश्चकार । उ० मे० 63 कवि कालिदास ने आर्यादेवी काली के चरण कमलों में प्रणाम कर यह रचा है। इसमें मेघ की अत्यन्त चतुराई का और कवियों की कल्पना का परिचय भी मिल जाएगा । - 4. कुवलयद [ को: पृथिव्याः वलयमिव- उप० स०] नीला, कुमुद, कुमुद, कमल, पृथ्वी । धूतोद्यानं कुवलयरजो गन्धिभिर्गन्धवत्या स्तोयक्रीडानिरत युवतिस्नानतिक्तैर्मरुद्भिः । पू० मे० 37 जल-विहार करने वाली युवतियों के स्नान करने से महकता हुआ और कमल के गंध में बसी हुई गंधवती नदी की ओर से आने वाला पवन, उपवन को बारबार झुला रहा होगा। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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