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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achary 638 कालिदास पर्याय कोश इन सबकी चमक से जगमगाता हुआ वह नगर ऐसा जान पड़ता था, मानो स्वर्ग ही उतर कर वहाँ चला आया हो। 2. शोभ :-[शुभ ल्युट्] चमकना, उज्जवल होना, जगमगाना, खिलना। बभूव तस्याश्चतुरस्रशोभि वपुविर्भक्तं नवयौवनेन। 1/32 पार्वतीजी का शरीर भी नया यौवन पाकर बहुत ही खिल उठा। एतावता नन्वमुमेयशोभि काञ्चीगुणस्थानमनिन्दितायाः। 1/37 उन अत्यंत सुन्दर अगों वाली के नितम्ब कितने सुन्दर रहे होंगे। मापि नीलालाक मध्य शोभि विस्रंसयन्ती नवकर्णिकारम्। 3/62 पार्वती जी ने भी सिर झुकाया, तो उनके काले-काले बालों में गुंथे हुए कर्णिकार के फूल गिर पड़े। परस्परेण स्पृहणीय शोभं न चेदिदं द्वन्द्वमयोजियिष्यत्। 7/66 सुन्दरता में एक दूसरे से बढ़े हुए इस जोड़े का यदि विवाह न होता। 3. काश :-[कास] चमकना, उज्जवल या सुन्दर दिखाई देना, प्रकट होना, दिखाई देना। तया दुहित्रा सुतरां सवित्री फुरत्प्रभामण्डलया चकासे। 1/24 तेजोमण्डल से भरे मुख वाली उस कन्या को गोद में पाकर मेना भी खिल उठीं। सरिद् विहंगैरिव लीयमानैरामुच्य माना भरणाचकासे। 7/23 जैसे रंग बिरंगे पक्षियों के आ जाने से नदी सुहावनी लगने लगती है, वैसे ही मणियों, मोतियों और सोने के गहने पहना दिए जाने पर पार्वती जी की स्वाभाविक सुन्दरता भी निखर उठी। तासां च पश्चात् कनक प्रभाणां काली कपालाभरणा चकासे। 7/39 सोने के समान चमकने वाली उन माताओं के पीछे-पीछे उजले खप्परों से देह सजाए भद्रकाली जी आ रही थीं। भुजंगाधिपति 1. भुजंगाधिपति :-[भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च+अधिपति]शेषनाग। ततो भुजंगाधिपतेः फणाग्रैरधः कथं चिद्धृत भूमि भागः। 3/59 उनके बैठने की भूमि को शेष भगवान् बड़ी कठिनाई से अपने फणों पर संभाल पाए। 2. शेष :-[शिष्+अच्] एक विख्यात नाग का नाम, शेषनाग। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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