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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 623 लता गृह द्वारगतोऽथ नन्दीवामप्रकोष्ठार्पित हेमवेत्रः। 3/41 उस समय नन्दी अपने बाएँ हाथ में सोने का डंडा लिए हुए लता मंडप के द्वार पर बैठा। तत्र वेत्रासनासीनान्कृतासन परिग्रहः। 6/53 हिमालय ने इन ऋषियों को बेंत के आसनों पर बैठा दिया। दक्षिणेतर 1. दक्षिणेतर :-[वि०] [दक्ष्+इनन्+इतर] बायाँ, उत्तरी, उत्तर दिशा। तमिमं कुरु दक्षिणेतरं चरणं निर्मित रागमेहि मे। 4/19 अभी थोड़ी देर पहले जब तुम मेरे पैरों में महावर लगाने बैठे थे और केवल बाएँ पाँव में ही लगा पाए थे। दक्षिणेतरभुजव्यपाश्रयां व्याजहार सहधर्मचारिणीम्। 8/29 उसे देखकर अपनी बाईं भुजा के सहारे बैठी हुई अपनी पत्नी से बोले। 2. वाम :-वि० [वम्+ण अथवा वा+मन्] बायाँ, बाईं ओर स्थित। लता गृह द्वार गतोऽथ नन्दी वामप्रकोष्ठार्पित हेमनेत्रः। 3/41 उस समय नंदी अपने बाएँ हाथ में सोने का डंडा लिए हुए लता मंडप के द्वार पर बैठा। दिश् 1. दिश् :-वाणी, आदेश। समादिदेशैकवर्धू भवित्री प्रेम्णा शरीरार्धहरां हरस्य। 1/50 यह भविष्यवाणी कर दी, कि यह कन्या अपने प्रेम से शिवजी के आधे शरीर के स्वामिनी और उनकी अकेली पत्नी बनकर रहेगी। 2. ब्रू [वच ]:-बोलना, वाणी, आदेश, कहना। उवाच मेना परिभ्य वक्षसा निवारयन्ती महतो मुनि व्रतात्। 5/3 तब पार्वतीजी को गले से लगाकर उन्हें इतनी कड़ी तपस्या करने से बरजती हुई, वे बोली। यदुच्यते पार्वती पापवृत्तये न रूपमित्य व्यभिचारि तद्वचः। 5/36 हे पार्वती जी ! यह ठीक ही कहा जाता है कि सुन्दरता पाप की ओर कभी नहीं झुकती। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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