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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya s कुमारसंभव 621 तारक 1. तारक :-[त+णिच्+ण्वुल्] तारक नाम का एक राक्षस। तस्मिन्विप्रकृताः काले तारकेण दिवौकसः। 2/1 उन्हीं दिनों तारक नाम के राक्षस ने देवताओं को इतना सता रखा था। भवल्लब्धवरोदीर्णस्तारकाख्यो महासुरः। 2/32 हे भगवन् ! आपका वरदान पाकर तारक नाम का राक्षस ठीक उसी प्रकार सिर उठाता चला जा रहा है। तुषार 1. तुषार :-[वि.] तुष्+आरक्] ठंडा, शीतल, तुषाराच्छन्न, ओस से युक्त। पदं तुषारस्रुति धौत रक्तं यस्मिन्नदृष्ट्वापि हतद्विपानाम्। 1/6 यहाँ के सिंह जब हाथियों को मारकर चले जाते हैं, तब रक्त से लाल उनके पञ्जों की पड़ी हुई छाप हिम की धारा से धुल जाती है। 2. हिम :-[वि॰] [हिम+मक्] ठंडा, शीतल, सर्द, तुषारयुक्त, ओसीला। अनन्तरत्न प्रभवस्य यस्य हिमं न सौभाग्य विलोपि जातम्। 1/3 इस अनगिनत रत्न उत्पन्न करने वाले हिमालय की शोभा हिम के कारण कुछ कम नहीं हुई। निनाय सात्यन्त हिमोत्किरानिलाः सहस्य रात्रीरुदवासतत्परा। 5/26 पूस की जिन रातों में वहाँ का सरसराता हुआ पवन चारों ओर हिम ही हिम बिखेरता चलता था, उन दिनों वे रात-रात भर जल में बैठी बिता देती थीं। त्रिदिव 1. त्रिदिव :-स्वर्ग। प्रभामहत्या शिखयेव दीपस्त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्गः। 1/28 जैसे अत्यंत प्रकाशमान लौ को पाकर दीपक, मन्दाकिनी को पाकर स्वर्ग का मार्ग। 2. दिव :-[दीव्यन्यन्त्यत्र दिव्+वा आधारे डिवि-तारा०] स्वर्ग, आकाश, प्रकाश। मनस्याहितकर्तंच्यास्तेऽपि देवा दिवं ययुः। 2/62 देवता लोग भी आगे का काम सोच विचार कर स्वर्गलोक को चले गए। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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