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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 617 कुमारसंभव मातरं कल्पयन्त्वेनामीशो हि जगतः पिता। 6/80 महादेवजी संसार के पिता हैं, इसलिए पार्वती जी भी सब प्राणियों की माता बन जायेंगी। कर्णाव सक्तामलदन्त पत्रं माता तदीयं मुखमुन्नमय्य।7/23 इतने में पार्वती जी की माता मेना वहाँ आई और उन्होंने उमा का वह मुखड़ा ऊपर उठाया, जिसके दोनों ओर कानों में सुन्दर कर्ण फूल झूल रहे थे। 3. सावित्री :-[सवितृ+ङीप्] माता, गाय। तया दुहित्रा सुतरां सवित्री फुरत्प्रभामण्डलया चकासे। 1/24 वैसे ही तेजोमण्डल से भरे मुख वाली उस कन्या को गोद में पाकर मेना भी खिल उठी। ज्ञा 1. ज्ञा :-जानना, जानकार होना, परिचित होना। क्रुद्धेऽपि पक्षच्छिदि वृत्रशत्राववेदनाशं कुलिशक्षतानाम्। 1/20 पर्वतों के पंख काटने वाले इन्द्र के रुष्ट होने पर भी, उनके वज्र की चोट अपने शरीर पर नहीं लगने दी। प्रत्येकं विनियुक्तात्मा कथं न ज्ञास्यसि प्रभो। 2/31 आप तो सबके घट-घट में रमे हुए हैं, भला आपसे कोई बात छिपी थोड़े रहती है। अभिज्ञाश्छेदपातानां क्रियन्ते नन्दन दुमाः। 2/41 नन्दनवन के वृक्षों को बड़ी निर्दयता से काट-काट कर गिरा रहा है। 2. विद् :-[विद्+क्विप्] जानना, समझना, जानकार होना, जानने वाला, जानकार, विद्वान् पुरुष, मनुष्य। क्रुद्धेऽपि पक्षच्छिदि वृत्रशत्राववेदनाशं कुलिशक्षतानाम्। 1/20 पर्वतों के पंख काटने वाले इन्द्र के रुष्ट होने पर भी, उनके वज्र की चोट अपने शरीर पर नहीं लगने दी। तद्दर्शिनमुदासीनं त्वामेव पुरुषं विदुः। 2/13 आप ही उस प्रकृति का दर्शन करने वाले उदासीन पुरुष भी माने जाते हैं। न विवेद तयोरतृप्तयोः प्रिय मत्यन्त विलुप्त दर्शनम्। 4/2 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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