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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 616 कालिदास पर्याय कोश इस रात के समय सारा संसार इस प्रकार अँधेरे में घिर गया है, जैसे गर्भ की झिल्ली में लिपटा हुआ बालक हो। 4. विश्व :-[विश्व] संपूर्ण, सृष्टि, समस्त संसार। अतश्चराचरं विश्वं प्रभवस्तस्य गीयसे। 2/5 इसीलिए आपको ही सब संसार का उत्पन्न करने वाला बताते हैं। इति व्याहृत्य विवुधान्विश्वयोनिस्तरोदधे। 2/62 संसार को उत्पन्न करने वाले ब्रह्माजी इतना कहकर आँखों से ओझल हो गए। येनेदं धियते विश्वं धुयनिमिवाध्वनि। 6/76 संसार को इस प्रकार ठीक से चलाने वाले हैं, जैसे घोड़े मार्ग में रथ की लीक में बंधे रहते हैं। सते दुहितरं साक्षात्साक्षी विश्वस्य कर्मणाम्। 6/78 उन्हीं संसार भर के कामों को देखने वाले और वर देने वाले शंकरजी ने अपने लिए आपकी पुत्री मांगी है। 5. सर्ग :-[सृज+घञ्] सृष्टि, प्रकृति, विश्व। प्रयस्थिति सर्गणामेकः कारणतां गतः। 2/6 आप ही संसार का नाश, पालन और उत्पादन करते हैं। प्रसूति भाजः सर्गस्य तावेव पितरौ स्मृतौ। 2/7 वे ही दोनों रूप सारे संसार के माता पिता कहे जाते हैं। 6. सृष्टि :-[स्त्री०] [सृज्+क्तिन्] रचना, संसार की रचना, प्रकृति। नमस्त्रिमूर्तये तुभ्यं प्राक्सृष्टे: केवलात्मने। 2/4 हे भगवान संसार को रचने के पहले एक ही रूप में रहने वाले व रचना के समय तीन रूप के बन जाने वाले आपको प्रणाम है। जननी 1. जननी :-[जन्+विच्+अनि+ङीप्] माता, दया, करुणा। नीलकण्ठ परिभुक्तयौवनं तां विलोक्य जननी समाश्वसत्। 8/12 माता मेना को यह देखकर बड़ा संतोष हुआ, कि महादेवजी हमारी कन्या के यौवन का उपभोग कर रहे हैं। 2. माता :-[मान् पूजायां तृच् न लोपः] माता, माँ। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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