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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 613 चरण 1. चरण :-[च+ल्युट्] पैर, पद। जंगमं प्रैष्य भावे वः स्थावरंचरणांकितम्। 6/58 मेरे चल शरीर को तो आपने अपना दास बना लिया है और मेरे अचल शरीर पर आपने अपने पवित्र चरण धरे हैं। चरणौ रंजयन्त्रस्याश्चूडामणि मरीचिभिः। 6/81 अपने सिर पर धरे हुए मणियों की किरणों से पार्वती जी के ही चरण रंगा करेंगे। पद्मनाभ चरणांकिताश्मसु प्राप्त वत्स्वमृतविप्रषोनवाः। 8/23 जहाँ की चट्टानों पर विष्णु के चरणों की छाप और समुद्र मंथन के समय उड़े हुए अमृत की बूंदों के नये-नये छींटे पड़े हुए थे। आविभातचरणाय गृह्णते वारि वारिरुह बद्धषट् पदम्। 8/33 ये हाथी उस ताल की ओर बढ़े जा रहे हैं, जहाँ कमलों में भौरे बन्द पड़े हैं। 2. पद :-[पुं०] [पद्+क्विप] पैर, चरण । पदं तुषार स्तुति धौतरक्तं यस्मिन्नदृष्ट्वापि हतद्विपानाम्। 1/1 यहाँ के सिंह जब हाथियों को मारकर चले जाते हैं, तब रक्त से लाल उनके पंजों की पड़ी हुई छाप हिम की धारा से धुल जाती है। पदं सहेत भ्रमरस्य पेलवं शिरीषपुष्पम् न पुनः पतत्त्रिणः। 5/4 शिरीष के फूल पर भौरे भले ही आकर बैठ जायें, पर यदि कोई पक्षी उस पर आकर बैठने लगे, तब तो वह नन्हाँ सा फूल झड़ ही जायेगा। तं वीक्ष्य वेपथुमती सरसांगयष्टि-निक्षेपणाय पदमुद्धृतमुद्वहन्ती। 5/85 महादेवजी को देखते ही पार्वती जी के शरीर में कंपकंपी छुट गई। वे पसीने-पसीने हो गई और आगे चलने को उठाए हुए अपने पैर उन्होंने जहाँ का तहाँ रोक लिया। चीर 1. चीर :-[चिक्रन् दीर्घश्च] वल्कल, वस्त्र, पोशाक। ते त्र्यहादूर्ध्वमाख्याय चेरुश्चीर परिग्रहाः। 6/93 उन्होंने बताया तीन दिन पीछे विवाह करना ठीक होगा. यह कह करके सब वहाँ से विदा हो गए। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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