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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 612 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कं.श 2. दद् : - देना, प्रदान करना । ददौ रसात्पंकजरेणुसुगन्धिम् गजाय गण्डूषजलं करेणुः 1 3 / 37 हथिनी बड़े प्रेम से कमल के पराग में बसा हुआ सुगन्धित जल अपनी सूँड से निकालकर अपने हाथी को पिलाने लगी । चन्द्रकला 1. चन्द्रकला :-[चन्द्रकणिच् + रक् + कला ] चन्द्रमा की रेखा । पत्युः शिरश्चन्द्रकलामनेन स्पृशेति सखा परिहासपूर्वम् । 7/19 तब सखी ने ठिठोली करते हुए आशीर्वाद दिया कि भगवान् करे तुम इन पैरों से अपने पति की सिर की चन्द्रकला को छुओ । 2. शशांक लेखा :- चन्द्रमा की रेखा, चन्द्रकला । शशांक लेखा मिव पश्यतो दिवा सचेतसः कस्य मनोनदूयते । 5/48 ऐसा कौन जीता-जागता पुरुष होगा जिसका जी, इस शरीर को देखकर रो न पड़े, जो दिन के चन्द्रमा की लेखा के समान उदास दिखाई पड़ रहा है । करेण भानोर्बहुलावसाने संधुक्ष्य माणेव शशांक रेखा। 7/8 जैसे शुक्ल पक्ष में सूर्य की किरण पाकर चन्द्रमा चमकने लगता है। चर 1. चर :- [वि०] [ चर्+अच्] हिलने-डुलने वाला, चलने वाला, जंगम, सजीव । चराचराणां भूतानां कुक्षिराधारतां गतः । 6/67 चर और अचर सब आपकी गोद से ही सहारा पाते हैं। यावन्त्येतानि भूतानि स्थावराणि चराणि च। 6 / 80 ये भी संसार के चर और अचर सब प्राणियों की । For Private And Personal Use Only 2. जंगम : - [ गम् + यङ् +अच्, धातोर्द्वित्वं यडनेलुक् च] चर, सजीव । शरीरिणां स्थावर जंगमानां सुखाय तज्जन्मदिनं बभूव । 1/23 उनके जन्म के दिन चर-अचर सभी उनके जन्म से प्रसन्न हो उठे थे। जंगमं प्रैष्यभावे वः स्थावरंचरणांकितम् । 6/58 क्योंकि मेरे चल शरीर को तो आपने अपना दास बना लिया है और मेरे अचल शरीर पर आपने अपने पवित्र चरण धरे हैं।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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