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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 604 कालिदास पर्याय कोश 7. वसुन्धरा :-[वसूनि धारयति-वसु++णिच्+खच्+टाप्, मुम्] पृथ्वी, भूमि नमयन्सारगुरुभिः पादन्यासर्वसुंधराम्। 6/50 उसके पैरों की धमक से पृथ्वी भी पग-पग पर झुकती चली। खड्ग 1. खड्ग :-[खड्-गन्] तलवार। आत्मानमासन्नगणोपनीते खड्गे निषक्त प्रतिमंददर्श। 7/36 अपने पास बैठे हुए गण से खड्ग मँगाकर उसमें अपना मुँह देखा। 2. मण्डलाग्र :-तलवार, करवाल। सांपरायवसुधा स शोणितं मण्डलाग्रमिव तिर्यगुज्झितम्। 8/54 मानो युद्ध भूमि में टेढ़ी चलाई हुई लहू भरी करवाल हो। गंगा 1. गंगा :-[गम्+गन्+टाप्] गंगा नदी। तां हंसमाला: शरदीव गंगा महौषधिं नक्तमिवात्मभासः। 1/30 जैसे शरत् ऋतु के आने पर गंगाजी में हंस आ जाते हैं या जैसे अपने आप चमकने वाली जड़ी-बूटियों में रात को चमक आ जाती है। विकीर्ण सप्तर्षिबलिप्रहासिभिस्तथान गांगैः सलिलैविश्च्युतैः। 5/37 यों तो सप्त ऋषियों के हाथ से चढ़ाए हुए पूजा के फूल और आकाश से उतरी हुई गंगा की धाराएँ हिमालय पर गिरती हैं। गंगास्त्रोतः परिक्षिप्तं वप्रान्तर्ध्वलितौषधिः। 6/38 उस नगर के चारों ओर गंगाजी की धाराएँ बहती थीं, चमकने वाली जड़ी-बूटियाँ वहाँ प्रकाश करती थीं। यथैव श्लाघते गंगा पादेन परमेष्ठिनः। 6/70 जैसे गंगाजी, विष्णु के चरणों से निकलकर अपने को बहुत बड़ा मानती हैं। स तदुकूलाद विदूरमौलिर्वभौ पतद्गंग इवोत्तमाङ्गे। 7/41 उस समय शिवजी के सिर के पास छत्र से लटकता हुआ कपड़ा ऐसा जान पड़ता था, मानो गंगाजी की धारा ही गिर रही हो। मूर्ते च गंगायमुने तदीनां सचामरे देवमसेविषाताम्। 7/42 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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