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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 596 कालिदास पर्याय कोश शक्य मङ्गुलिभिरुत्थितैरथः शाखिनां पतितपुष्पपेशलैः। 8/72 पत्तों के बीच से छनकर धरती पर पड़ने वाली चाँदनी ऐसी सुन्दर और सुहावनी दिखाई दे रही हैं, जैसे पेड़ों से झड़े हुए फूल हों। केशर 1. केशर :-[के+सृ [१] +अच्, अलुक् स०] फूल का रेशा या तन्तु, पराग, रेणु। च्युत केशर दूषितेक्षणान्यवतंसोत्पलताडनानि वा। 4/8 जब मैंने अपने कान में पहने हुए कमल से तुम्हें पीटा था, उस समय उसका पराग पड़ जाने से जो तुम्हारी आँखें दुखने लगी थीं। 2. रेणु :-[पुं०, स्त्री०] [रीयतेः णुः नित्] धूल, पराग, पुष्परज, रेतकण। ददौ रसात्पंकजरेणुसुगन्धि गजाय गण्डूषजलं करेणुः। 3/37 हथिनी बड़े प्रेम से कमल के पराग में बसा हुआ सुगन्धित जल अपनी सूंड से निकालकर अपने हाथी को पिलाने लगी। 3. रजकण :-पराग, पुष्परज। मृगाः प्रियालदुममञ्जरीणां रजः कणैर्विजितदृष्टिपातः। 3/31 आँखों में प्रियाल के फूलों के पराग के उड़-उड़कर पड़ने से जो मतवाले हरिण भली-भाँति देख नहीं पा रहे थे। केसरिन् 1. केसरिन्:- [पुं०] [केसर+इनि] सिंह, श्रेष्ठ, सर्वोत्तम। विदन्ति मार्ग नखरन्ध्रमुक्तैर्मुक्ता फलैः केसरिणां किराताः। 116 उन सिंहों के नखों से गिरी हुई गज-मुक्ताओं को देखकर ही, यहाँ के किरात पता चला लेते हैं, कि सिंह किधर गए हैं। 2. सिंह :-सिंह, श्रेष्ठ, सर्वोत्तम। दृष्ट: कथंचिद् गवयैर्विविग्नैरसोढसिंह ध्वनिरुन्ननाद्। 1/56 तब नील गाएँ घबराकर उसे देखती रह जाती थीं, कि यह सिंह जैसा गरजने वाला दूसरा कौन आ पहुँचा। जित सिंह भया नागा यत्राश्वा बिलयोनयः। 6/39 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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