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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 584 कालिदास पर्याय कोश कर (ii) 1. कर :-[करोति, कीर्यते अनेन इति, कृ+अप्] किरण, रश्मि। करेण मानोर्बहुलावसाने संधुक्ष्यमाणेव शशाङ्करेखा। 7/8 जैसे शुक्ल पक्ष में सूर्य की किरण पाकर चन्द्रमा चमकने लगता है। 2. मयूख :- [मा+ऊख, मयादेशः] प्रकाश की किरण, रश्मि, अंशु। पद्मानि यस्याग्रसरोरुहाणि प्रबोधय मूर्ध्वमुखैर्मयुखैः। 1/16 उनके चुनने से जो कमल बच रहते हैं, उन्हें नीचे उदय होने वाला सूर्य अपनी किरणें ऊँची करके खिलाया करता है। नेत्रैरविस्पन्दितपक्ष्ममालैर्लक्ष्यीकृत घ्राणमधोमयूखैः। 3/47 भौंहें तानकर कुछ-कुछ प्रकाश देने वाली, निश्चल, उग्र तारों वाली और अपनी किरणें नीचे डाकने वाली आँखों से। विशोषितां भानुमतो मयूखैर्मन्दाकिनी पुष्करबीज मालाम्। 3/65 धूप में सुखाये हुए मन्दाकिनी के कमल के बीजों की माला। 3. रश्मि :-[अश्+मि-धातो रुट, रश+मि वा] किरण, प्रकाशकिरण, डोरी। पश्य पार्वतिनवेन्दुरश्मिभिर्भिन्नसान्द्रतिमिरं नभस्तलम्। 8/64 हे पार्वती ! उठे हुए चन्द्रमा की किरणों से घना अँधेरा मिट जाने पर आकाश ऐसा जान पड़ रहा है। करण 1. करण :-[कृ+ल्युट्] करना, कारण, कृत्य कार्य, दिन का एक भाग। उपमानमभूद्विलासिनां करणं यत्तव कान्तिमत्तया। 4/5 हे प्यारे ! आज तक विलासियों के शरीर की तुलना तुम्हारे जिस सुन्दर शरीर से की जाती थी। 2. हेतु :-[हि+तुन्] निमित्त, कारण, उद्देश्य, प्रयोजन। हेतुं स्वचेतोविकृतेर्दिदृक्षुर्दिशामुपान्तेषु ससर्ज दृष्टिम्। 3/69 यह देखने के लिए चारों ओर दृष्टि दौड़ाई कि मेरे मन में यह विकार लाया कौन। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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