SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achary 568 कालिदास पर्याय कोश विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनंशरीर बद्धः प्रथमाश्रमो यथा । 5/30 गठीले शरीर वाला एक जटाधारी ब्रह्मचारी उस तपोवन में आया। वह ऐसा जान पड़ता था, मानो साक्षात् ब्रह्मचर्याश्रम ही उठा चला आ रहा हो। तदा सहास्माभिरनुज्ञया गुरोरियं प्रपन्ना तपसे तपोवनम्। 5/50 ये अपने पिता की आज्ञा लेकर, हम लोगों के साथ तप करने के लिए यहाँ तपोवन में चली आईं। आसन 1. आसन :-क्ली० [आस्यतेउपविश्यतेऽस्मिन् । आस्+अधि करणे+ल्युट्] आसन। स वासवेनासन संनिकृष्टमितो निषीदेति विसृष्टभूमिः। 3/2 इन्द्र ने कामदेव से कहा-आओ यहाँ बैठो। यह कहकर अपने पास ही बैठा लिया। तत्र वेत्रासनासीनान्कृतासन परिग्रहः।। 6/53 हिमालय ने इन ऋषियों को बेंत के आसनों पर बैठा दिया। क्लृप्तोपचारां चतुरस्रवेदी तावेत्य पश्चात्कनकासनस्थौ।। 7/88 वहाँ से महादेवजी और पार्वतीजी फूलों से सजे हुए चौक में लाए गए और सोने के आसन पर बैठा दिए गए। 2. विष्टर :- [वि+स्तृ+अप्, षत्वम्] आसन। तत्रेश्वरो विष्टर भाग्यथा वत्सरत्नमयं मधुमच्च गव्यम्।। 7/72 वहाँ आसन पर महादेवजी को बैठाकर हिमलय ने रत्न, अर्ध्य, मधु, दही और नए वस्त्र दिए। 1. इन्द्र :-[इन्द+रन्, इन्दतीति इन्द्रः, इदिऐश्वर्ये ] इन्द्र। अनुकूलयतीन्द्रोऽपि कल्पदुम विभूषणैः।। 2/39 इन्द्र भी अपने दूतों के हाथ कल्पवृक्ष के सुन्दर रत्न उसके पास भेजकर उसे प्रसन्न रखा करते हैं। देह बद्धमिवेन्द्रस्य चिरकालार्जितं यशः। 2/47 जो बहुत दिनों से इकट्ठा किए हुए इन्द्र के यश के समान ही महान् था। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy