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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 567 पहले पार्वती जी की दोनों सखियों ने शंकर जी को प्रणाम किया और अपने हाथ से चुने हुए। कदाचिदासन्नसखी मुखेन सा मनोरथज्ञं पितरं मनस्वनी। 5/6 हिमालय तो पार्वती जी के मन की बात जानते ही थे। इसी बीच एक दिन पार्वती जी ने अपनी प्यारी सखी से कहलाकर। यथा तदीयर्न यनैः कुतूहलात्पुरः सखीनाम मिमीत लोचने। 5/15 कभी-कभी मन बहलाव के लिए अपनी सखियों के आगे उन्हें लाकर, वे उन हरिणों के नेत्रों से अपने नेत्र मापा करती थीं। सखी तदीया समुवाच वर्णिनं निबोध साधो तवचेत्कुतूहलम्। 5/52 तब पार्वती जी की सखी उस ब्रह्मचरी से बोली-हे साधु, यदि आप सुनना ही चाहते हैं, तो मैं बताती हूँ। रात्रिवृत्तमनु योक्तुमुद्यतं सा प्रभात समये सखीजनम्। 8/10 जब इनकी सखियाँ इनसे रात की बातें पूछने लगीं। त्वं मया प्रियसखी समागता श्रोष्यतेव वचनानि पृष्ठतः। 8/59 मैं तुम्हारे पीछे आकर तुम लोगों की बात उस समय सुनता हूँ, जब तुम अपनी सखियों के साथ बैठकर बातें करती हो। आश्रम 1. आश्रम :- पुं०, क्ली० [आ+श्रम्+घञ्] आश्रम। विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनं शरीर बद्धः प्रथमाश्रमो यथा। 5/3 गठीले शरीर वाला एक जटाधारी ब्रह्मचारी उस तपोवन में आया, वह ऐसा जान पड़ता था मानो साक्षात् ब्रह्मचर्याश्रम ही उठा चला आ रहा हो। आश्रमाः प्रविशदग्धेनवो बिभ्रति श्रियमुदीरिताग्नयः। 8/3 लौटकर आती हुई सुन्दर गौओं से और हवन की जलती हुई अग्नि से, ये आश्रम कैसे सुहावने लग रहे हैं। 2. तपोवन :-आश्रम। नवोट जाभ्यन्तरसंभृतानलं तपोवनं तच्च बभूव पावनम्। 5/17 वहाँ नई पर्णकुटी में सदा हवन की अग्नि जलती रहा करती थी। इन सब बातों से वह तपोवन बड़ा पवित्र हो गया था। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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