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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 75 रघुवंश सशब्दमभिषेकश्रीगंगेव त्रिपुरद्विषः। 17/14 अभिषेक के जल की धारा शिवजी के सिर पर गंगाजी की धारा के सामन गिर रही थी। 2. जहु कन्या :-[हा+नु, द्वित्वमाकारलोपश्च+कन्या] गंगा। शशिनमुपगतेयं कौमुदी मेघमुक्तं जलनिधि मनुरूपं जह्वकन्यावतीर्णा। 6/85 यह तो चंद्रमा और चाँदनी का मेल हुआ है और गंगा जी समुद्र में मिल गई हैं। 3. जह दुहिता :-[हा+नु, द्वित्वमाकारलोपश्च+दुहिता] गंगा। अवार्यतेवोत्थितवीचिहस्तैर्जनोर्दुहित्रास्थितया पुरस्तात्। 14/51 मार्ग में गंगाजी पड़ीं, उनमें जो लहरे उठ रही थीं, मानों हाथ हिलाकर कह रही थीं कि ऐसा न करो, ऐसा न करो। 4. जाह्नवी :-[जहनु+अण+ङीप्] गंगा नदी का विशेषण। त्वय्येव निपतन्त्योघा जाह्नवीया इवार्णवे। 10/26 जैसे गंगाजी की सभी धाराएँ समुद्र में ही गिरती हैं, वैसे ही सभी मार्ग आप में ही पहुँचते हैं। सैकताम्भोज बलिना जाह्नवीव शरत्कृशा। 10/69 जैसे शरदऋत में पतली धार वाली गंगाजी के तट पर किसी का चढ़ाया हुआ नीला कमल रक्खा हुआ हो। 5. भागीरथी:-[भगीरथ+अण+ङीप] गंगा नदी का नामान्तर। इयेषभूयः कुशवंति गन्तुं भागीरथीतीर तपोवनानि। 14/28 मैं गंगाजी के तट के उन तपोवनों को देखना चाहती हूँ, जहाँ कुशा की झोपड़ियाँ चारों ओर खड़ी हैं। 6. सुरसरि :-[सु+रा+क+सरित्] गंगा। सुरसरिदिव तेजो वह्नि निष्ठ्यूतमैशम्। 1/75 जैसे स्कंद को उत्पन्न करने वाले शंकरजी के उस तेज को गंगाजी ने धारण किया, जिसे अग्नि भी नहीं संभाल सका था। गज 1. अनेकप :- हाथी। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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