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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 कालिदास पर्याय कोश कोष 1. आकर :-[आ कुर्वन्त्यस्मिन्-आ+कृ+घ] खान। बभूव वज्राकर भूषणायाः पतिः पृथिव्याः किल वज्रणाभः। 18/21 उनके पीछे उनके पुत्र वज्रनाभ, हीरे की खानों का भूषण पहनने वाली पृथ्वी के स्वामी हुए। 2. कोष :-[कुश् (ष)+घञ्, अच् वा] पात्र, भांडार, ढेर। तमध्वरे विश्वजिति क्षितीशं निःशेष विश्राणित कोष जातम्। 5/1 जिस समय रघु विश्वजित यज्ञ में अपना सब कुछ दान किए बैठे थे। प्रातः प्रयाणाभिमुखाय तस्मै सविस्मयाः कोषगृहे नियुक्ताः। 5/29 दूसरे दिन तड़के जैसे ही रघु चलने को हुए, वैसे ही राजकोश के रक्षकों ने आकर यह अचरज-भरा समाचार दिया। 3. खनि (अनि):-[खन्+इ] खान। खनिभिः सुषुवे रतं क्षेत्रैः सस्यं वनैर्गजान्। 17/66 खानों ने रत्न, खेतों ने अन्न और वनों ने हाथी उन्हें दिए। उत्खात शत्रु वसुधोपतस्थे रलोपहारैरुदितैः खनिभ्यः। 18/22 उनका शत्रु विनाशक पुत्र सारी पृथ्वी का शासक हुआ और खानों से रत्न उपहार में प्राप्त किए। कौत्स 1. कौत्स :- उपात्त विद्यो गुरुदक्षिणार्थी कौत्सः प्रपेदे वरतन्तु शिष्यः। 5/1 उसी समय वरतन्तु के शिष्य कौत्स ऋषि गुरुदक्षिणा के लिए धन माँगने को उनके पास आ पहुँचे। दिदेश कौत्साय समस्तमेव पादं सुमेरोरिव वज्र भिन्नम्। 5/30 वह सोने का ढेर ऐसा चमक रहा था, जैसे किसी ने वज्र से सुमेरु पर्वत का एक टुकड़ा काटकर गिरा दिया हो। रघु ने वह सारा सोना कौत्स को भेंट कर दिया। स्पृशन्करेणानत पूर्वकार्य संप्रस्थितो वाचुमुवाच कौत्सः। 5/32 जब कौत्स चलने लगे, तब राजा ने उन्हें प्रणाम किया। कौत्स बड़े प्रसन्न थे और उन्होंने राजा के सिर पर हाथ धरते हुए कहा। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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