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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 461 रघुवंश दुदोह गां स यज्ञाय सस्याय मघवा दिवम्। 1/26 राजा दिलीप प्रजा से जो कर लेते थे, वह स्वर्ग के राजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ में लगा देते थे। दिवं मरुत्वानिव भोक्ष्यते भुवं दिगन्त विश्रान्तरथो हि तत्सुतः। 3/4 भविष्य में उसका पुत्र भी संपूर्ण पृथ्वी पर उसी प्रकार राज करे, जैसे इंद्र स्वर्ग पर राज करते हैं। समारु रुक्षुर्दिवमायुषः क्षये ततान सोपान परम्परामिव। 3/69 उन्होंने मानो स्वर्ग जाने के लिए यज्ञों की सीढ़ी सी बना ली थी। उपलब्धवती दिवश्च्युतं विवशा शापनिवृत्तिकारणम्। 8/82 जैसे ही उसे स्वर्गीय पुष्प दिखाई पड़े, वैसे ही वह शाप से छूटकर, शरीर छोड़कर चली गई। 4. द्यौ :-[द्युत् + डो] स्वर्ग, बैकुण्ठ, आकाश। क्रममाणश्चकार द्यां नागेनैरावतौजसा। 17/32 इन्द्र के समान राज अतिथि, जब ऐरावत के समान बलवान हाथी पर चढ़कर अयोध्या में निकले, तो नगरी स्वर्ग के समान लगने लगी। कौमुद्वतेयः कुमुदावदातैामर्जितां कर्मभिरारुरोह। 18/3 कुमुद्वती के पुत्र अतिथि ने बहुत दिनों तक सुख भोगा और फिर अपने पुण्यों के बल से पाए हुए स्वर्गलोक में, सुख भोगने चले गए। तस्मिन्यते द्यां सुकृतोपलब्धां तत्संभवं शङ्खणमर्णवान्ता। 18/22 उन्होंने अपने पुण्य के बल से स्वर्ग प्राप्त किया और उनके पीछे शंखण नाम का उनका शत्रुविनाशक पुत्र । 5. नाक :-[न कम् अकम् दुःखम्, तत् नास्ति अत्र इति नि० प्रकृति भावः] स्वर्ग। तस्मिन्नात्मचतुर्भागे प्राङ्नाकमधितस्थुषि। 15/96 अपने चौथाई अंश लक्ष्मण के स्वर्ग चले जाने पर राम। 6. सुरालय :-[सुष्ठु राति ददात्यभीष्टम् :-सु + रा + क + आलय:] स्वर्ग, बैकुण्ठ। सुराऽलयप्राप्तिनिमित्तमम्भस्त्रैस्रोतसं नौलुलितं ववन्दे। 16/34 क्योंकि कपिल के कोप से जले हुए उनके पूर्वज सगर के पुत्र उसी जल की कृपा से स्वर्ग पहुँचे थे। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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